70 साल तक हम भी मच्छरों की तरह भिनभिनाया करते थे

सत्येन्द्र उपाध्याय। भक्त शांति से बैठा अख़बार पढ़ रहा था, तभी कुछ मच्छरों ने आकर उसका खून चूसना शुरू कर दिया। भक्त जिसे भगवान मानता है, उसके पूज्य बाबा ने 1947 में तय कर दिया था कि बेटा, आज तक हो हुआ सो हुआ। अब मच्छरों को मारना नहीं, यह गुनाह होगा। कानून बना दिया है, मारा तो सजा मिलेगी लेकिन तुम्हे आजादी है कि तुम उनके हमलों से खुद की रक्षा करो। आएं तो भगाओ, भगाने के लिए अगरबत्ती जलाओ, गुडनाइट लगाओ, बगीचे में बैठे हो तो आडोमॉस लगाओ, इन सबके लिए पैसे सरकार देगी। सरकार ने विभाग बना दिए हैं। तुम्हे बस शिकायत करनी है ​कि मच्छर परेशान कर रहा है, सरकारी कर्मचारी आएंगे और आपके पास भिनभिना रहे मच्छर को भगाकर जाएंगे। लेकिन उस जंगली भक्त ने अपने भगवान के बाबा की बात नहीं मानी। हाथ उठाया और अख़बार से चटाक। दो-एक मच्छरों का कत्ल कर डाला। कानूनन उसे जेल में डाल देना था परंतु परमभक्त था, सो भगवान भी चुप रहे। कोई कार्रवाई नहीं। फिर क्या था हंगामा शुरू। लोगों ने कहा यह गलत है। नियम विरुद्ध है। असहिष्णुता है। हिंसा है, आतंक है। भक्त बोला कोई खून चूसोगे तो मैं मारूंगा!! इसमें असहिष्णुता की क्या बात है??? लोगों ने कहा तुम्हारे बाबा का कानून है। तुम मार नहीं सकते, बस भगा सकते हो। तुम्हारे प्रिय देश में मच्छरों भी जिंदा रहने की आजादी है। भक्तों का कुतर्क जारी रहा। बुद्धिजीवियों ने भी उन्हे समझाने का हठ नहीं छोड़ा।

बहस बढ़ती गई। लोग उस भक्त को बाबा का लोकतंत्र समझा रहे थे जो कान में फुंतरू लगाए, लोदी के गीत सुन रहा था। कभी कभी निकालकर दो चार कुतर्क और जड़ देता था। देखते ही देखते उसके हजारों समाजबंधु आ गए। शास्त्रों और श्लोकों की मनमानी व्याख्या करने लगे। लोकतंत्र में राजाओं की कहानी सुनाकर उसके शिकार को उचित करार देने लगे। प्रमाण पत्र जारी करना शुरू कर दिया। जो हमारा विरोध कर रहा है वो धर्म विरोधी है। जो हमारी बात नहीं मान रहा देशद्रोही है। कुछ और आगे निकल पड़े। बोले निकल जाओ हमारे देश से। पाकिस्तान चले जाओ। 70 साल के राज में उस तानाशाह ने भी ऐसी हरकतेें नहीं की थीं जो ढाई साल के राज में ये कर रहे हैं। बातें ऐसे करते हैं जैसे इनके ससुर जी ने देश इन्हे दहेज में दे दिया है। बात बढ़ती गई, भक्तगण आक्रोशित होते गए। लालपीले होते गए।

आख़िरकार भक्तों ने तुलसी बाबा की पंक्तियां सुनाईं: "सठ सन विनय कुटिल सन प्रीती...."। और फिर अपने भगवान के पास जा पहुंचे, बोले: काला हिट उठाओ और मंडली से मार्च तक, बगीचे से नाले तक उनके हर सॉफिस्टिकेटेड और सीक्रेट ठिकाने पर हमला कर दो। कुछ देर के लिए तेजी से भिन्न-भिन्न होगी और फिर सब शांत हो जाएगा। उसके बाद से न कोई बहस न कोई विवाद, न कोई आज़ादी न कोई बर्बादी, न कोई क्रांति न कोई सरोकार!!! सब कुछ ठीक हो जाएगा!! यही दुनिया की रीत है.!!!

भगवान ने समझाया, रे, अंधभक्त ! जरा लगाम लगा, तेरी इन्हीं हरकतों ने मुझे बदनाम कर दिया है। अकल नहीं है तो किसी से सीख, मेंढक की तरह फुदक मत। 70 साल तक हम भी ऐसे ही मच्छरों की तरह भिनभिनाया करते थे। यदि उन्होंने कालाहिट मार दिया होता तो आज ना मैं यहां होता और ना तुम वहां होते। किसी डस्टबिन में पड़े होते। मम्मी को याद करके रो रहे होते।

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