लखनऊ। बसपा सुप्रीमो मायावती धीरे-धीरे अपनी रणनीति में बदलाव ला रही हैं। हालांकि वह सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर अभी कायम हैं लेकिन अब इस फार्मूले में मुसलमान अहम भूमिका निभाते दिख रहे हैं। वैसे सवर्णों की संख्या अभी भी सबसे ज्यादा है लेकिन इनमें लगातार कमी होती भी देखने को मिल रही है।
बसपा सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के साथ 2007 में बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही थीं, लेकिन सत्ता विरोधी लहर ने 2012 में उनके इस फार्मूले को फेल कर दिया। बसपा के प्रत्याशी चयन की बात करें तो मायावती ने इस बार भी सबसे ज्यादा सवर्ण प्रत्याशियों को ही टिकट दिए हैं लेकिन दिलचस्प बात ये है कि हर चुनाव की तरह इस बार भी ये संख्या कम होती ही दिख रही है।
2007 में जहां मायावती ने 139 सवर्ण प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें 86 ब्राह्मण और 38 क्षत्रिय शामिल थे, 2017 आते आते यह संख्या 113 तक घट चुकी है। अब सिर्फ 66 ब्राह्मण प्रत्याशी हैं और 36 क्षत्रिय प्रत्याशी। वैसे सवर्ण प्रत्याशियों पर से विश्वास मायावती का 2012 के चुनाव के दौरान ही कम होने लगा था, उस समय 117 सवर्ण प्रत्याशी बसपा ने उतारे थे, जिनमें 74 ब्राह्मण थे और 33 क्षत्रिय।
वहीं मुस्लिम प्रत्याशियों की बात करें तो उन पर हर चुनाव में बसपा सुप्रीमो का विश्वास बढ़ता दिख रहा है। इस बार बसपा ने 97 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। 2007 में यह संख्या 61 हुआ करती थी। 2012 में भी इसमें बढ़ोत्तरी देखने को मिली थी, तब 85 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे गए।
पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशियों पर भी मायावती का विश्वास थोड़ा कम होता दिख रहा है। 2007 में जहां 114 प्रत्याशी ओबीसी वर्ग के थे, 2012 में ये संख्या 1 घटकर 113, इस बार 2017 में बसपा ने 7 प्रत्याशी कम करते हुए 106 ओबीसी प्रत्याशी उतारे हैं।
दलित वर्ग पर मायावती का विश्वास कायम है, हालांकि इसमें में हर बार एक—एक प्रत्याशी की कमी देखने को मिल रही है। 2007 में जहां 89 दलित प्रत्याशी थे, 2012 में ये 88 हुए और इस बार 87 प्रत्याशी हो चुके हैं।