भोपाल। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान मंच से जब भाषण देते हैं तो सबसे ज्यादा संवेदनशील व्यक्ति नजर आते हैं, लेकिन आज उनके ट्वीटर अकाउंट में कंटेंट लिखने वाले कर्मचारी ने जो खुलासा किया वो चौंका देने वाला है। कंटेंट राइटर का आरोप है कि वहां बंधुआ मजदूरों की तरह व्यवहार किया जाता है। डॉक्टर ने जिसे बेडरेस्ट पर भेजा, उसे भी काम पर बुलाया गया। वेतन रोक लिया जाता है। श्रम कानूनों का कोई पालन नहीं होता। 365 दिन लगातार 24 घंटे काम पर बुलाया जाता है। भ्रष्टाचार यहां भी है। एक कंपनी ने काम लिया और दूसरे को ठेके पर दे दिया।
मामला मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ट्विटर अकाउंट से संबंधित है। इस अकाउंट पर अंग्रेजी में ट्वीट के लिए साल 2015 में विश्वदीप नाग को सीएम के पर्सनल कंटेंट राइटर के रूप में नियुक्त किया गया था। पहले तो सबकुछ ठीक रहा, लेकिन बाद में ये उनके लिए “बुरे सपने में बदल गया।” अब उन्होंने मानव आयोग में मामले की शिकायत करने के साथ ही सीएम के नाम भी खुला खत लिखा है।
अपने खत में उन्होंने शिवराज सिंह चौहान को संबोधित करते हुए लिखा कि, “घटना होने पर प्रदेश की जनता में भरोसा जगाने वाले आपके पर्सनल ट्वीट्स मैंने ही बनाए थे। आज आपके तंत्र में मेरा भरोसा ही डगमगा रहा है। प्रिंट मीडिया में ढाई दशक बिताने के बाद अप्रैल 2015 में जब मुझे आपके सोशल मीडिया सेल में काम करने का ऑफर मिला तो मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा... आपने 2005 में सत्ता संभाली थी। पिछले एक दशक में मैंने संवेदनशील सरकार, कामकाज में पारदर्शिता और प्रशासन में जवाबदेही जैसे शब्द खूब सुने थे, लेकिन इसके ठीक विपरीत आपके सोशल मीडिया सेल का संचालन करने वाली कंपनी ने सारे नियम-कानूनों को हवा में उड़ा दिया है... लोग खुद को कानून से ऊपर समझने लगे हैं। चूंकि यह प्रोजेक्ट आपका अपना है, इसलिए किसी को यह भ्रम नहीं होना चाहिए। आपके सबसे करीबी प्रोजेक्ट में इतना निरंकुश तंत्र पनप जाएगा, यह मेरी कल्पना शक्ति से परे था।
विश्वदीप ने आगे अपने खत में खुद की नियुक्ति का उदाहरण देते हुए सीएम के नाम पर कंपनियों और अधिकारियों के बीच “मलाई खाने” की होड़ के चलते हो रही धांधली की भी पोल खोली। “गड़बड़ी की शुरुआत इंटरव्यू और चयन प्रक्रिया से ही हो गई थी। जिस व्यक्ति ने कंपनी का शीर्ष अधिकारी बनकर प्रारंभिक इंटरव्यू लिया, बाद में वेतन पर बातचीत के दौरान वह यह कहकर पलट गया कि वह इस निर्णय में शामिल नहीं है। लिहाजा, उससे बात ना की जाए। मेरी प्रोफेशनल लाइफ में यह पहला मौका था, जब मुझे पता नहीं था कि मेरा चयन कौनसी कंपनी कर रही थी... मुझे समझ आया कि कंपनी ने किसी अन्य कंपनी को ठेका अपना निश्चित हिस्सा लेकर दे दिया है... मुख्यमंत्री के सोशल मीडिया सेल के ठेके से दो कंपनियां मलाई खाएंगी, यह मेरे लिए थोड़े आश्चर्य का विषय था।
आपके सोशल मीडिया सेल में मानव संसाधन का कोई मूल्य नहीं, मशीन से भी बदतर व्यवहार… कंपनियों में मुनाफा कमाने की इतनी लालसा कि 24 घंटे सोशल मीडिया सेल संचालित करने के नाम पर… दुनिया के सारे श्रम कानूनों को पैरों तले रौंद दिया गया… उच्च रक्तचाप से मेरी बाईं आंख की रौशनी आंशिक रूप से जा चुकी है। सोशल मीडिया सेल के प्रबंधक को इसकी जानकारी थी लेकिन उनके लिए मैं हाड-मांस का इंसान नहीं, बल्कि महज एक मशीन था।
“… एक दिन मैं अत्यधिक बीमार था। डॉक्टर ने आराम की सलाह दी थी,लेकिन प्रबंधक मुझे आपका नाम लेकर ट्वीट्स बनाने का दबाव डाल रहे थे। मेरे जीवन को जोखिम में डाला जा रहा था। यह मुनाफा कमाने के लिए सारी मर्यादाएं तोड़ने की निकृष्ट प्रवृत्ति है। मेरे मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन। किसी भी कर्मचारी को बिना साप्ताहिक अवकाश दिए 365 दिन 24 घंटे काम करने के लिए बाध्य करना अमानवीय शोषण की श्रेणी में आता है। यह किसी को बंधुआ मजदूर बनाने के समान ही है। सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि मेरे साथ आपके सोशल मीडिया सेल में ऐसा हुआ है।
विश्वदीप नाग का कहना है कि वो फ्रीलांसिंग से काम कर अपने परिवार का पूरा खर्चा चलाते थे, लेकिन 24 घंटे सीएम के ट्विटर को संभालने के कारण उनके हाथ से सभी अन्य काम छिन गए। विश्वदीप नाग ने कहा कि उन्होंने मानव अधिकार आयोग में शिकायत वेतन पाने के लिए नहीं बल्कि उनके मानवाधिकारों का जिस तरह से हनन किया गया है, उसे लेकर की है। दो दशक के करियर में पहले कभी उनका ऐसा शोषण नहीं हुआ। ऐसे में वो अब सिर्फ न्याय पाना चाहते हैं।