
चेन्नई के बाद अब मोतिहारी में हुआ खुलासा अगर सही है, तो यह वाकई भयावह है। यह बताता है कि पाकिस्तान और दुबई में बैठी खुराफाती एजेंसियों ने अपने इरादे तो नहीं बदले हैं, मॉड्यूल जरूर बदल लिए हैं। घोड़ासहन में पिछले साल रेल ट्रैक पर मिले बम की जांच के दौरान हत्थे चढ़े मोती पासवान, मुकेश और उमाशंकर के खुलासे बताते हैं कि इसके लिए लाखों की डील हुई थी और जब ब्लास्ट नहीं हो पाया, तो डील करने वाले दो युवकों को नेपाल ले जाकर मार दिया गया था। डील नेपाल में हुई थी, लेकिन रिमोट दुबई में बैठे आईएसआई एजेंट शमसुल होदा के हाथ में था। वह सब कुछ मॉनिटर कर रहा था, ठीक मुंबई कांड की तर्ज पर। बस इतना ही हुआ कि तब ग्रामीणों की सतर्कता से साजिश सफल नहीं हो पाई थी। उसी को पूर्वाभ्यास मानकर बाद में कानपुर के पुखरायां और रूरा में हादसों को अंजाम दिया गया। ताजा खुलासा आईएसआई की ओर से नए खतरे का संकेत भी है। मान लेना चाहिए कि शहरों की चौकसी से बचने के लिए साजिशकर्ताओं ने अब बियाबान से गुजरने वाले रेलवे ट्रैक को अपना निशाना बनाया है। यह शायद उनके लिए आसान टारगेट होने के साथ ज्यादा नुकसान और दहशत फैलाने वाला भी हो, क्योंकि तीन महीने में तीन हादसों (1 अक्तूबर, 20 नवंबर और 28 दिसंबर) में एक ही मॉड्यूल का इस्तेमाल इत्तिफाक नहीं हो सकता।
यह इसलिए भी चिंता का विषय है कि आईएसआई जैसे संगठन अब हमारे बीच के असंतुष्ट युवाओं में से अपने मोहरे चुनने लगे हैं, जो शायद उनके लिए ज्यादा मुफीद हों। मगर यह हमारी सुरक्षा एजेंसियों के लिए चेत जाने का वक्त है। मंगलवार को पकड़े गए तीनों अभियुक्त इलाके के लिए नए नहीं हैं। एक माओवादी गुट से जुड़कर काम करता रहा है, तो बाकी दो पर भी तमाम आपराधिक मामले दर्ज हैं। स्थानीय अपराधियों को मोहरा बनाए जाने की आशंका पहले भी जाहिर की जाती रही है, लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। ऐसे में, यह हमारी सुरक्षा एजेंसियों के लिए अपने काम करने के तौर-तरीकों पर फिर से झांकने का समय भी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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