
महिला आयोग की शुक्रवार को बेंच थी। इसमें 54 प्रकरण रखे गए थे। आयोग की अध्यक्ष और सदस्य ने कुल तीन केस ही सुने थे कि 2 बज गए। लंच ब्रेक के दौरान अध्यक्ष लता वानखेड़े और सदस्य गंगा उइके आयोग के एक साल की उपलब्धियां गिनाने मीडिया से रूबरू हुई। प्रेस कान्फ्रेंस के बाद फिर सुनवाई होना थी, लेकिन वानखेड़े व उइके के समर्थक गाजे-बाजे के साथ पहुंच गए। आयोग की अध्यक्ष और सदस्य ने प्रोटोकाॅल उल्लंघन करते हुए कोर्ट रूम में ही सेलिब्रेशन शुरू कर दिया।
बेटों और बेटियों से पीड़ित कोटरा सुल्तानाबाद से आई 78 वर्षीय महिला सुबह से न्याय की आस में बैठी रही। उनका कहना था कि अब तक वे आयोग 4 बार आ चुकी है लेकिन अभी तक न्याय नहीं मिला है। वहीं 20 से अधिक महिलाएं बिना सुनवाई के लौट गई।
कोर्ट रूम में पार्टी होते देख कई पीड़िताएं लौट गईं, वहीं दूरदराज से आई महिलाएं इंतजार करती रहीं। साढ़े चार बजे के बाद उनकी सुनवाई हुई। पीड़िताओं ने आयोग पर आरोप लगाया कि जब उन्हें जश्न ही मनाना था तो हम लोगों को सुनवाई के लिए क्यों बुलाया?
मैने कुछ गलत नहीं किया: लता
लता वानखेड़े, अध्यक्ष, राज्य महिला आयोग का कहना है कि पीड़िताओं का आरोप बिलकुल गलत है। मैंने कोई कार्यक्रम प्रायोजित नहीं किया था। समर्थक अचानक वहां पहुंच गए और एक साल पूरे होने पर सम्मान किया। मुझे नहीं लगता कि मैंने किसी भी प्रोटोकाॅल का उल्लंघन किया है।
डकोरम का ध्यान रखना चाहिए था
समर्थकों को मना नहीं कर सकते लेकिन बेंच का एक डेकोरम होता है। आयोग की अध्यक्ष और सदस्य को सुनवाई के समय सिविल कोर्ट की शक्तियां प्राप्त हैं। कोर्ट में सुनवाई करते समय प्रोटोकाॅल का पालन होना चाहिए। आयोग की अध्यक्ष को चाहिए था कि वे अपने कक्ष में सम्मान प्राप्त करती। वहीं अध्यक्ष का पद संवैधानिक है। इस पद से इस्तीफा देने के बाद ही दूसरा कोई पदभार संभल सकते हैं।
उपमा राय, पूर्व अध्यक्ष, महिला आयोग
अध्यक्ष को पता ही नहीं उनका पद संवैधानिक है
महिला आयोग की अध्यक्ष को यह पता ही नहीं है कि उनका पद संवैधानिक है। नियमानुसार इस पद पर नियुक्त व्यक्ति न तो राजनीतिक बैठकों में जा सकता है न अन्य कोई पद संभाल सकता है। अध्यक्ष वानखेड़े ने स्वीकार किया है कि वे भारत स्काउट गाइड की भी अध्यक्ष हैं। उनका कहना है कि उन्हें आयोग के संविधान की जानकारी नहीं है। वे वरिष्ठों के कहने पर भारत स्काउट-गाइड के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाल रही हैं। इधर, शुक्रवार को पेशे से वकील प्रमोद दुबे भी बेंच में बैठकर सुनवाई करते देखे गए, जबकि वे ऐसा नहीं कर सकते।