नईदिल्ली। चुनाव में जीत की जरूरत पूरी करने के लिए विचारधारा और सिद्धांतों को दांव पर लगा रहे भाजपा के दिग्गज नेताओं को पहली बार सबक मिला है। यह पहली बार है जब जमीनी भाजपाई के दवाब में हाईकमान दिखाई दिया। जिस एनडी तिवारी का अमित शाह बाहें पसार कर 3 महीने से इंतजार कर रहे थे, अब उनसे पल्ला झाड़ लिया गया। जो गुलदस्ता एनडी तिवारी को स्वागत में मिला था, वही विदाई का बुके भी साबित हुआ।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं विकास पुरुष 91 वर्षीय दिग्गज कांग्रेसी नेता नारायण दत्त तिवारी को भाजपा में लाने के लिए 3 महीने से तैयारियां चल रहीं थीं। पार्टी ने खुद आगे बढ़ कर तिवारी के पुत्र रोहित शेखर को हलद्वानी से चुनाव लड़ाने की पेशकश की थी। लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं के दवाब में भाजपा हाईकमान ने यूटर्न ले लिया है। हालांकि अभी भी भाजपा उत्तराखंड में तिवारी को जरूरी मान रही है। रोहित तिवारी से कहा गया है कि वो भाजपा की ओर से चुनाव प्रचार करें। सरकार बनने के बाद संगठन उनका यथायोग्य ध्यान रखेगा। मगर उनकी तरफ से इस प्रस्ताव का रविवार तक कोई जवाब नहीं आया।
गौरतलब है कि तिवारी ने अपनी पत्नी और पुत्र के साथ इसी हफ्ते शाह से मुलाकात कर भाजपा को समर्थन देने की घोषणा की थी। पार्टी सूत्रों ने बताया कि नेतृत्व को इस बात का अंदाजा नहीं था कि तिवारी के मामले में जमीनी कार्यकर्ता इस कदर आंदोलित हो जाएगा। जिस प्रकार मीडिया और सोशल मीडिया में तिवारी से जुड़े कारनामे एकाएक सामने आने लगे, और देश भर में वरिष्ठ भाजपाईयों ने जिस मुखरता के साथ इस कदम का विरोध किया, उससे नेतृत्व चिंतित हो गया।
चूंकि उत्तराखंड में पार्टी करीब डेढ़ दर्जन बाहरी नेताओं को उम्मीदवार बना कर पहले से नाराजगी झेल रही थी, ऐसे में रोहित को टिकट दे कर पार्टी इस विवाद को बढ़ाना नहीं चाहती थी। यही कारण है कि रोहित को चुनाव प्रचार करने और चुनाव के बाद उनके बारे में सोचने का प्रस्ताव दिया गया। हालांकि रोहित की ओर से अब तक इस प्रस्ताव पर कोई जवाब नहीं आया है।