भोपाल। डॉक्टर की लापरवाही से नाराज मरीज का परिजन यदि अभद्र भाषा का भी उपयोग करे तो उसके खिलाफ विशेष कानून के तहत कड़ी कार्रवाई होती है। एफआईआर दर्ज कर उसे जेल भेज दिया जाता है। यदि पुलिस गिरफ्तारी से पहले जांच करती है तो डॉक्टर हड़ताल कर देते हैं लेकिन यदि डॉक्टर की लापरवाही के कारण मरीज की मौत हो जाए तो सरकार कोई कार्रवाई नहीं करती। बड़वानी नेत्र शिविर कांड 2015 इसका जीता जागता उदाहरण है। इस शिविर में 67 लोग अंधे हो गए थे। सरकार पीड़ितों को पेंशन तो दे रही है लेकिन 67 लोगों को अंधा कर देने वाले डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। सभी मजे से अपनी नौकरियां कर रहे हैं। ना एफआईआर, ना जांच ना चार्जशीट। सब रफादफा।
एक बार फिर यह मामला सुर्खियों में आ गया है। पत्रकार विकास तिवारी की रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में 68वां पीड़ित सामने आया है। उसने भी पेंशन की मांग की है। वित्त विभाग ने उसे आजीवन पेंशन देने से इंकार कर दिया। मामला फिर से सुर्खियों में ना जाए इसलिए सरकार इसे पेंशन दिलाने के लिए कैबिनेट में नया प्रस्ताव लाने जा रही है।
यह हुआ था 2015 में
बड़वानी जिला अस्पताल में 16 से 22 दिसंबर 2015 के बीच 86 मरीजों का मोतियाबिंद का आपरेशन किया गया था। साठ साल पुराने आॅपरेशन थियेटर में प्रदूषित आईवी फ्लूड के इस्तेमाल किए जाने के कारण आपरेशन कराने वाले 67 मरीजों की आंखें में एडआॅप्थेमाइटिस और दो मरीजों को पेन एंडआॅप्थेमाइटिस का संक्रमण हो गया था। इस संक्रमण के पाए जाने के बाद इन मरीजों को इंदौर के अरविंदो अस्पताल और एमवाय अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जांच के बाद 67 मरीजों की आंखों की रोशनी स्थाई रुप से चली गई। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने उस समय तत्काल इन सभी मरीजों को दो-दो लाख रुपए की मदद दिए जाने और इलाज का खर्च उठाने तथा आजीवन पेंशन देने की घोषणा की थी।
सभी निलंबितों को बहाल कर दिया
इस मामले में इलाज करने वाले डॉक्टर आरएस पलोड, सिविल सर्जन ओटी इंजार्ज लीला वर्मा, नर्स माया चौहान, विनीता चौकसे, शबीना मंजूरी, सहायक प्रदीप चौकसे को निलंबित किया गया था। तत्कालीन संयुक्त संचालक शरद पंडित ने इस पूरे मामले की जांच की थी, लेकिन जांच में किसी को दोषी नहीं पाया गया। इस पूरे मामले में निलंबित सभी लोगों को बहाल कर दिया है।
बाद में आया मरीज, इसलिए नहीं दे रहे पेंशन
इसी नेत्र शिविर में इलाज कराने वाले संक्रमित मरीज बड़वानी के मोयदा निवासी शिकारिया की आंख भी इलाज के दौरान बाद में पूरी तरह चली गई। इस साल जून में यह तय हुआ कि आॅपरेशन के दौरान हुए संक्रमण से ही उनकी आंखें पूरी तरह खराब हो गई है। मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार बड़वानी में इलाज के दौरान संक्रमण के शिकार मरीजों की बाद में भी आंखें खराब होती हैं तो उन्हें भी आजीवन पेंशन दिया जाना है। कलेक्टर बड़वानी ने जब शिकारिया को आजीवन पांच हजार रुपए पेंशन दिए जाने का प्रस्ताव शासन को भेजा तो वित्त विभाग ने यह कहकर पेंशन देने से इंकार कर दिया कि संक्रमित मरीजों की सूची एक साथ तय की गई थी यह मरीज बाद में आया है इसे पेंशन दिया जाना संभव नहीं है। इसके बाद सामाजिक न्याय विभाग अब शिकारिया को आजीवन पांच हजार रुपए पेंशन दिए जाने के लिए प्रस्ताव मंत्रिपरिषद के समक्ष ला रहा है। कैबिनेट की मंजूरी के बाद शिकारिया को अपनी आंखों की रोशनी जाने के बाद आजीवन पेंशन दिए जाने का निर्णय लिया जाएगा।