मप्र में कैसे होगी मानवाधिकारों की रक्षा, अध्यक्ष महोदय दौरा ही नहीं करते

भोपाल। मप्र का राज्य मानव अधिकार इन दिनों सुर्खियों में है। मानव अधिकार दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम केवल इसलिए रद्द कर दिया गया क्योंकि मंत्रीजी नहीं आए। अब अध्यक्ष महोदय की कार्यशैली पर सवाल लग गया है। मानवाधिकार आयोग में सबसे ज्यादा शिकायतें आतीं हैं। बावजूद इसके राज्य मानव अधिकार के कार्यवाहक अध्यक्ष डॉ.वीएम कंवर जमीनी हकीकत जानने दौरे पर नहीं निकलते। उन्हे इस आसंदी पर ढाई बरस हो गया है। सवाल यह है कि यदि अध्यक्ष महोदय जेल और थानों का दौरा ही नहीं करेंगे तो ग्राउंड जीरो पर न्याय पहुंचने की उम्मीद कितनी रह जाएगी। 

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम-1993 में प्रावधान है कि आयोग को जेल, पुलिस, स्कूल, अस्पताल जैसी एजेंसियों का सतत निरीक्षण करना चाहिए, ताकि वहां कार्यरत लोग मानव अधिकारों के प्रति सजग रहें लेकिन मौजूदा आयोग को इस अधिनियम से सरोकार नहीं दिखता। वर्तमान में आयोग के अध्यक्ष डॉ.वीएम कंवर 30 जुलाई-14 को बतौर कार्यवाहक अध्यक्ष कार्यभार संभाला है। कुर्सी संभालने के बाद डॉ.कंवर ने 12 सितंबर-15 को राजधानी में निशक्त आश्रम का निरीक्षण किया था। इसमें मूक-बधिर बच्चों की स्थिति के बारे में जानकारी ली थी। इसके बाद डॉ.कंवर ने शनिवार को जेपी अस्पताल और कैलाश नाथ काटजू अस्पताल में व्यवस्थाओं का जायजा लिया। कार्यवाहक अध्यक्ष बनने के पूर्व डॉ.कंवर ने राज्य मानव अधिकार आयोग के सदस्य के तौर पर उमरिया दौरे के दौरान एक आंगनबाड़ी का निरीक्षण किया था।

सिर्फ सिफारिशों तक सीमित आयोग
स्वयंसेवी संस्था आयोग के समन्वयक प्रशांत दुबे का आरोप है कि मानव अधिकार आयोग अपने तरीके से ही काम कर रहा है। उसकी भूमिका सिर्फ सिफारिशों तक ही सीमित रह गई है। हाल ही में बैरागढ़ में बच्चों के लैंगिग शोषण का मामला हुआ लेकिन आयोग ने मौके पर जाने की जरूरत नहीं समझी। इसी तरह जेल, पुलिस थानों का निरीक्षण न करना आयोग की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगाता है। लगातार निगरानी न होने से लोगों के मानव अधिकार कैसे सुनिश्चित होंगे?

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