नोटबंदी पर अपनी भद पिटवाने वाले भक्तजनों के नाम खुलाखत

डॉ प्रतीक श्रीवास्तव। आतंकवाद, महँगाई, विदेश नीति और अर्थव्यवस्था के गिरते स्तर से चिंतित मोदी सरकार को जैसे ही अर्थक्रान्ति के अनिल बोकल ने नोटबंदी की सलाह दी और इससे 5 लाख करोड़ के कम से कम फायदे का गणित समझाया,सरकार की बांछे खिल गईं और बिना बोकल की पूरी बात सुने,बिना देश और दुनिया के अर्थशास्त्रियों,अनुभवी बैंकर्स से बात किये बिना आनन्-फानन में देश पर नोटबंदी थोप दी गई।

कहा गया कि काले धन के खात्मे,आतंकवाद और जाली नोटों के सफाये के लिए ये कदम जरुरी था। लगभग पूरे देश ने पहली नजर में इस कदम को सराहा, कुछ अर्थशास्त्रियों ने पहले ही दिन इसकी खामियां गिनाई लेकिन किसी ने उनकी सुनी नहीं। देश अचानक देशभक्ति और राष्ट्रप्रेम की ऐसी धारा में बहने लगा जैसे गांधी जी के सत्याग्रह आंदोलन के समय बहा करता था। देश का हर लड़का अचानक से रातों-रात अर्थशास्त्री बन गया और लाइन में लगे गरीबों की तुलना सीमा पर खड़े सैनिकों से करने वाला मैसेज रातों-रात देशभर में वायरल हो गया।

आलम ऐसा बना कि लगने लगा कि 2017 का पहला सूरज भारत के लिए वो सवेरा लेकर आएगा जहाँ दुनिया के सारे देश हमारे आगे हाथ जोड़े खड़े होंगें क्योंकि अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत हो चुकी होगी कि हमारा हर नागरिक बिल गेट्स से कम नहीं माना जाएगा। धीरे-धीरे बैंक और एटीएम खाली होने लगे, आतंकवादी घटनाएं जारी रहीं, काला धन बैंकों और पेट्रोल पम्पों के जरिये रातो-रात सफ़ेद हो गया, एटीएम दो हजार के नकली पिंकी उगलने लगे और बैंकों में धड़ाधड़ 13 लाख करोड़ से ज्यादा जमा हो गए जो कि कुल नकद का 82% था। 

मनो काला धन गुम गया, आतंकवाद और जाली नोटों में कोई फर्क नहीं आया और हजारों करोड़ का नुकसान उल्टे भारतीय बाजारों को होने लगा। तभी अचानक CMIE नामक संस्था का सर्वे आया जिसने सरकार और उसके भक्तों के कटे पर नमक छिड़क दिया। वो कहता था कि देश की अर्थव्यवस्था को नोटबंदी से करीब सवा लाख करोड़ की चपत लगेगी। मनमोहन, अमर्त्य सेन, रघुराम राजन, केसी चक्रवर्ती सहित दुनिया के ज्यादातर अर्थशास्त्री पहले ही देशभक्ति की आड़ में चल रही बेवकूफी का जुलूस निकाल चुके थे, रही सही कसर CMIE ने पूरी कर दी।

अब सरकार की हालत पेड़ पर चढ़े उस आदमी की तरह हो गई थी, जिसके नीचे शेर खड़ा गुर्रा रहा था और ऊपर की डाल पर अजगर बैठा था। तभी सरकार जी को किसी ने एक जबरदस्त आईडिया सुझाया। किसी ने कहा कि काले धन, आतंकवाद, नकली नोटों को मारो गोली और कैशलेस के फायदे गिनाने शुरू करो कैशलेस के। सरकार ने फिर अपने करोड़ो अनुयायियों को एक नया फरमान सुनाया और देशभक्ति के फॉर्म में से काले धन, नकली नोट और आतंकवाद के खात्मे वाली बातें काटकर तुरंत कैशलेस लिख दिया गया बोल्ड अक्षरों में। अब आधा हिंदुस्तान कैशलेस और डिजिटलाईजेशन के फायदे गिना रहा है। अर्थशास्त्री लड़का अब आईटी इंजीनियर बन गया है और सब्जी वाले, चाट वाले सबको पेमेंट paytm से लेने का ज्ञान पेल रहा है।

ये सारा घटनाक्रम एक उदाहरण मात्र है कि जब भी आप किसी भी चीज को बिना बुद्धि-विवेक का इस्तेमाल किये भावनाओं के कहने पर न सिर्फ स्वीकार करते हो बल्कि उसे प्रमोट भी करने लग जाते हो तो नुकसान होने की, जगहंसाई होने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं। व्यक्तिपूजक या दलपूजक व्यक्ति इतिहास में कभी भी बुद्धिमानों की श्रेणी में नहीं गिना गया। उसे पहले भी मूर्ख, सेवक या चमचा कहा जाता था और आगे भी कहा जाएगा। बलवान व्यक्ति के साथ खड़ा दिखने वाला व्यक्ति सदैव कायर होता है क्योंकि उसको ये ज्ञात होता है कि मेरा अपना कोई वजूद नहीं। अवसरवाद की यह विचारधारा सदैव मक्कारों या मंदबुद्धि लोगों द्वारा ही अपनाई जाती है।

इसलिए बजाय किसी का आँखमूंदकर अनुसरण करने के, खुद की कोई ऐसी लकीर तैयार करिये, जहाँ भले ही अभाव हों, तकलीफें हों, मुश्किलें हों, बदनामी हो, गालियां हों, लेकिन वो लकीर सब लकीरों से अलग हो। यकीनन वो लकीर आपको एक दिन ज्ञान के उस सूरज का रास्ता दिखाएगी, जहाँ कोई मतलबी या बेईमान आदमी आपको गुमराह नहीं कर सकेगा। 
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