
कच्चे तेल के दाम एक साल में दोगुना से अधिक हो गए हैं, जो उभरते बाजारों के लिए खतरा है। दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल उपभोक्ता भारत का मानना है कि कच्चे तेल के दाम 60 डॉलर प्रति बैरल को छूने के बाद नीचे आएंगे। ओपेक तथा गैर ओपेक सदस्यों के बीच 2008 के बाद पहली बार उत्पादन में कटौती के समझौते के बाद पिछले दो सप्ताह में कच्चे तेल के दाम 15 प्रतिशत चढ़ गए हैं।
ब्रेंट कच्चा तेल जनवरी में 27.88 प्रति डॉलर के रिकॉर्ड निचले स्तर पर चला गया था। अब यह 55 प्रति डॉलर पर पहुंच गया है। कच्चे तेल की कीमतों में इस बढ़ोतरी से भारत जैसे देशों का गणित बिगड़ सकता है जो अपनी कच्चे तेल की 80 प्रतिशत जरूरत आयात से पूरे करा करते हैं। इससे महंगाई बढ़ने का भी अंदेशा है।
हालांकि सरकार के एक शीर्ष अधिकारी का मानना है कि फिलहाल चिंता की कोई बात नहीं है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बाद कच्चा तेल 17 साल के उच्च स्तर से नीचे आ गया है।
अधिकारी ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि कच्चा तेल 60 डालर प्रति बैरल को छूने के बाद नीचे आएगा।’’ भारत अपनी तेल जरूरत का 80 प्रतिशत आयात से पूरा करता है। कच्चे तेल के दामों में एक डॉलर की वृद्धि पर भारत को हर साल 9,126 करोड़ रुपये या 1.36 अरब डालर अतिरिक्त खर्च करने पड़ेंगे। वित्त वर्ष 2015-16 में भारत ने कच्चे तेल के आयात पर 63.96 अरब डॉलर खर्च किए। इससे पिछले वित्त वर्ष में कच्चे तेल के आयात पर 112.7 अरब डालर और 2013-14 में 143 अरब डॉलर खर्च किए गए थे।