गांधी की लाठी पकड़कर चलने वाला बच्चा, तंगहाल जिंदगी, दर्दनाक मौत

नईदिल्ली। यूं तो महात्मा गांधी भारत के लिए परमपूज्य हैं परंतु यह सबकुछ बस राजनैतिक मंचों तक ही रहा। महात्मा गांधी के साल 1930 के ऐतिहासिक नमक सत्याग्रह के समय गांधी की लाठी पकड़कर आगे आगे चलने वाला 8 साल का बच्चा, पूरी जिंदगी तंगहाल रहा और दर्दनाक मौत के साथ उसकी कहानी समाप्त हो गई। 

आज आठ दशक बाद भी यह तस्वीर लोगों के जेहन में बसी हुई है। यह तस्वीर मुंबई के जुहू समुद्र तट और देश के अलग-अलग हिस्सों में बनाए गए संग्रहालयों में लगकर अमर हो चुकी है। उस बच्चे का नाम था कानु रामदास गांधी। कानु महात्मा गांधी के पौत्र थे। कानु गांधी का एक धर्मार्थ अस्पताल में सोमवार देर रात निधन हो गया। अपने आखिरी वक्त में कानु गांधी को गरीबी व मुफलिसी से भरे दिन देखने पड़े। उनके पास इलाज तक के लिए पैसे नहीं थे। उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था।

कानु रामदास गांधी अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा के पूर्व वैज्ञानिक भी थे। राष्ट्रपिता के पौत्र होते हुए भी उनकी मौत मुफलिसी से लड़ते हुए हुई। एक मंदिर के प्रबंधन के अलावा कानु गांधी की देखभाल करने वाला कोई नहीं था। अहमदाबाद के धीमंत बधिया से जो बन पड़ा, उन्होंने किया। वे कानु गांधी के पुराने मित्र थे और महात्मा गांधी के एक सहयोगी के पौत्र हैं। उन्होंने हाल में अपने पास से कानु गांधी के इलाज के लिए 21000 रुपया दिए थे।

बधिया कहते हैं कि कानु की हालत को देखकर उन्हें अहमदाबाद के प्रसिद्ध साबरमती आश्रम से चिढ़ सी हो रही है जिसके अगले साल होने वाले शताब्दी महोत्सव के लिए करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं। ऐसे ही महात्मा गांधी के नाम पर कई संस्थानों को करोड़ों रुपये सरकार द्वारा दिए जा रहे हैं। लेकिन, किसी को महात्मा गांधी के विचारों या उनके वारिसों से कोई सरोकार नहीं था।

बधिया ने बताया कि राधाकृष्ण मंदिर ने बहुत अधिक साथ दिया है। उन्होंने (मंदिर प्रशासन) कानु को पास के शिव ज्योति अस्पताल में भर्ती कराया है और वही लोग कानु की 90 वर्षीय पत्नी शिवालक्ष्मी कानु गांधी की देखभाल कर रहे हैं। शिवालक्ष्मी सुन नहीं सकती हैं और वृद्धावस्था की अन्य समस्याओं से ग्रस्त हैं।" कानु और शिवालक्ष्मी नि:संतान हैं। कानु ने 25 साल तक नासा की सेवा कीं। चार दशक बाद 2014 में वे स्वदेश लौटे और उनके हालात बुरे होते गए।

भारत में अमेरिका के तत्कालीन राजदूत जान केनेथ गालब्रेथ, कानु को मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) में अध्ययन के लिए ले गए थे। कानु ने नासा और अमेरिकी रक्षा मंत्रालय में काम किया था। शिवालक्ष्मी बोस्टन बॉयोमेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट में प्रोफेसर थीं।

बधिया ने कहा, "भारत लौटने के बाद पति-पत्नी एक-जगह से दूसरी जगह भटकते रहे क्योंकि यहां उनका अपना कोई स्थायी ठिकाना नहीं था। कुछ समय के लिए दोनों आश्रमों और धर्मशालाओं में रहे। एक समय आया जब वह दिल्ली के गुरु विश्राम वृद्धा आश्रम में छह महीने तक रहने के लिए बाध्य हो गए थे।"

मानसिक रूप से बीमार बुजुर्गों के इस आश्रम में दंपति को भयावह दिन देखने पड़े। यहां तक कि उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए निजी सशस्त्र गार्ड रखने पड़े थे। इन हालात में एक केंद्रीय मंत्री ने कानु से संपर्क किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी बात कराई थी।

बधिया ने कहा, "प्रधानमंत्री बहुत सहानुभूति से पेश आए और मदद का वादा किया। लेकिन, इसके बाद आज की तारीख तक हमें न तो उनके कार्यालय (पीएमओ) से और न ही गुजरात सरकार की तरफ से, कोई भी संदेश सुनने को नहीं मिला।" उन्होंने कहा कि गुजरात के किसी नेता या मंत्री ने कानु का हाल जानने के लिए पूछताछ करने या अस्पताल आने की जहमत नहीं उठाई थी।

कानु दिल का दौरा पड़ने और मस्तिष्काघात के बाद 22 अक्टूबर को सूरत पहुंचे। उनका आधा शरीर लकवाग्रस्त हो गया था। तभी से वे कोमा में थे और लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर थे। शिवालक्ष्मी और एक आश्रम सेवक राकेश उनके पास थे। राकेश को मंदिर अधिकारियों ने कानु गांधी के लिए तैनात किया था।

सौभाग्य से कानु की बुजुर्ग बहन उषा गोकानी मुंबई से नियमित रूप से उनकी हालचाल पूछती रहती थी। बेंगलुरु में रहने वाली एक अन्य बहन सुमित्रा कुलकर्णी हाल में उन्हें देखने आई थीं। सुमित्रा पूर्व राज्यसभा सदस्य हैं। बधिया ने कहा, "बहनों ने कहा कि वे कानु के इलाज का खर्च उठाएंगी। लेकिन, मंदिर अधिकारियों ने विनम्रता से पेशकश को नकार दिया था। उनका कहना था कि कानु की सेवा कर वे राष्ट्र के लिए महात्मा गांधी की सेवा का कर्ज चुकाने की थोड़ी कोशिश कर रहे हैं।" 

वहीं सूरत जिला के भाजपा अध्यक्ष कानु गांधी से मिलने अस्पताल पहुंचे औऱ अस्पताल प्रबंधन को ब्लैंक चेक देकर अस्पताल का बिल भरा, लेकिन तब किसी ने भी कानू गांधी की मदद नहीं की, जब उन्हें मदद की सबसे ज्यादा जरूरत थी। अब उनके निधन के बाद सोशल मीडिया पर दिग्गज उनके निधन पर शोक प्रकट कर रहे हैं।
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