मैं राजनीति में कभी नहीं आना चाहता था: सिंधिया

शिवपुरी। मप्र में कांग्रेस की ओर से सीएम कैंडिडेट के प्रबल दावेदार ज्योतिरादित्य सिंधिया का कहना है कि वो कभी राजनीति में आना ही नहीं चाहते थे, लेकिन हालात ने उन्हे नेता बना दिया। सिंधिया यहां रेडिएंट कॉलेज में 'छात्र संसद' को संबोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने स्टूडेंट्स को मैनेजमेंट के कई फंडे सिखाए। इस दौरान एक छात्र ने जब उनसे पूछा कि आपको क्रिकेट पसंद था और क्रिकेट खेलते थे, तो फिर सियासत में कैसे आ गए ? 

इस सवाल का जवाब सिंधिया ने बड़े ही भावुकता से दिया। उनका कहना था, मैं राजनीति में कभी नहीं आना चाहता था। मैंने इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई पूरी की और वहीं एक बैंक में नौकरी कर रहा था। अचानक पिता जी की मृत्यु हो गई। परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि मुझे राजनीति में आना पड़ा लेकिन इस चुनौती को भी मैंने स्वीकार किया और आज मुझे राजनीति में आए पन्द्रह साल हो गए। जनता ने मुझे जो भी जिम्मेदारी दी, मैंने उसे हमेशा ईमानदारी से पूरा करने की कोशिश की है। 

सक्सेस के लिए कोई शॉर्टकट नहीं होता
सिंधिया ने कहा, देश में आज संसाधनों की कमी नहीं है। कमी है तो सोच की, नए आइडिया की। हमारे सामने ऐसी कई मिसालें मौजूद हैं, ऐसे लोग हैं जिन्होंने कम वक्त में देश के अंदर जबर्दस्त कामयाबी हासिल की है। नारायणमूर्ति, नंदन नीलकणि और उनके एक दीगर दोस्त ने साल 1985 में महज पचास हजार रूपए से ‘इंफोसिस’ कंपनी की स्थापना की और आज यह कंपनी तकरीबन बीस मिलियन डालर की हो गई है। इंफोसिस की कामयाबी के पीछे एक ही कारक है, उन्होंने जिंदगी में कभी शॉर्टकट नहीं अपनाया। सफलता के लिए कोई शोर्टकट नहीं होता। यदि आपका लक्ष्य स्पष्ट है, तो कामयाबी मिलना निश्चित है। 

जिंदगी हमारी बैंलेस शीट
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, जिंदगी हमारी बैंलेस शीट है। जिसमें हमारे काम का पूरा लेखा-जोखा होता है। जिस तरह बैलेंस शीट में एक तरफ जमा और एक तरफ खर्च लिखा होता है, ठीक उसी तरह हमने जिंदगी में क्या सही किया और क्या गलत किया, यह सबकुछ दर्ज होता है। नीचे विशेष नोट भी होता है कि जिंदगी में हम क्या क्या कर सकते थे जो नहीं किया। 

छोटे-छोटे टारगेट फिक्स करें
मैं हमेशा पहले एक-दो छोटे-छोटे लक्ष्य तय करता हूं, फिर उनको पूरा करने के लिए काम में जुट जाता हूं। जब एक छात्रा ने सिंधिया से उनकी हॉबियों के बारे में जानना चाहा, तो उनका जवाब था मेरी कई हॉबी हैं, लेकिन अब इन हॉबियों के लिए समय निकालना मुश्किल होता है। जब मैं कॉलेज में था या फिर जब नौकरी करता था, उस वक्त मैं अपने कई शौक पूरे कर पाता था। किताबें पढऩा, उसमें भी खास तौर से इतिहास की किताबें। क्रिकेट, तैराकी, वाइल्ड लाइफ यह सब मेरे कुछ शौक हैं। आप लोगों को भी मेरा एक सुझाव है, आप जिंदगी में भले ही कुछ भी करिए, लेकिन कुछ वक्त अपने आप और परिवार के लिए भी निकालिए। 
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