ब्रिक्स: आतंकवाद पर चीन की बेसुरी बीन

राकेश दुबे@प्रतिदिन। ब्रिक्स के संयुक्त घोषणा पत्र में भारत के चाहने के बावजूद जैश-ए-मोहम्मद का जिक्र नहीं आया साथ ही चीन के राष्ट्रपति शी जिनिपंग ने अपने भाषण में आतंकवाद के लिए कारणों पर ध्यान देने की बात कही, जो  प्रकारांतर से पाकिस्तान का बचाव ही था। भारत-पाक संबंधो के बारे में चीन के नजरिए से पूरी दुनिया परिचित है। वह भारत से उपर पाक के आतंकवादियों के समर्थन को रखता है।

कहने इसमें हर तरह के आतंकवाद की निंदा है। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में परस्पर द्विपक्षीय एवं विश्व मंच पर भी करीबी सहयोग स्थापित करने की रजामंदी है और इनको धन उपलब्ध कराने पर रोक लगे, इसके लिए काम करने का संकल्प है। सबसे बढ़कर इसमें कहा गया है कि उद्देश्य राजनीतिक, धार्मिंक, रंगभेद या किसी भी अन्य आधार पर आतंकवादी गतिविधियों को जायज नहीं ठहराया जा सकता है।

इतना ही नहीं सभी देशों ने आतंकवाद पर समग्र संधि पर जल्द आगे बढ़ने पर सहमति जताई है। यह भारत का ही प्रस्ताव है, जिसे इसने 1996 में संयुक्त राष्ट्रसंघ में पेश किया था। यह नाक सीधे न छूने की जगह उल्टा हाथ घूमाकर छूने जैसा है। आतंकवाद पर पाकिस्तान को घेरने तथा उसे अलग-थलग करने की रणनीति के तहत भारत ने आरंभ से ही जो माहौल बनाया उसका पूरा असर सम्मेलन में तो दिखा ही, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ नेताओं की द्विपक्षीय वार्ताओं में भी यह प्रभावी रहा। वैसे भी पूरे ब्रिक्स सम्मेलन को एक एजेंडा तक सीमित करना उचित भी नहीं होता। भारत ने दूसरे मुद्दों को भी तरजीह  दी।रहआर्थिक मसले इसके सर्वोपरि एजेंडा रहे हैं और उन पर निर्णय और सहमति भविष्य की दृष्टि से मायने रखती है। 

मसलन, मौद्रिक नीति बनाने पर आगे बढ़ने, ब्रिक्स बैंक द्वारा विकास परियोजनाओं को मदद देने की प्रक्रिया को तेज करना, एक-दूसरे के बाजारों को जोड़ने की नई कोशिश आदि ऐसे निर्णय हैं जिन पर यदि काम हुआ तो सम्पूर्ण वैश्विक वित्तीय व आर्थिक ढांचा इससे प्रभावित होगा. किंतु प्रश्न तो यही है कि क्या वाकई ऐसा होगा? कारण, चीन व्यापार और विकास करते हुए भी भारत को आर्थिक और रणनीतिक तौर पर सीमित रखने की नीति पर काम कर रहा है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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