दुःख की घड़ी में मुंहतोड़ जवाब का जन घोष

राकेश दुबे@प्रतिदिन। अब यह आम चर्चा का विषय है की हम पाकिस्तान से पडौसी धर्म निभाए या मुंहतोड़ जवाब दें।  पूरा देश मुंहतोड़ जवाब देने के पक्ष में है। जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के ढाई दशक के इतिहास में एक साथ इतनी संख्या में जवानों के हताहत होने का यह पहला मामला है। कहने को वे चार आत्मघाती आतंकवादी भी मारे गए, लेकिन जो मरने के लिए आते हैं, उनका मारा जाना बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं हो सकती।

हालांकि दुख की इस घड़ी में कोई प्रश्न उठाना उचित नहीं लगता पर खुफिया द्वारा सेना के ठिकानों पर हमले की सूचना दिए जाने के बाद आतंकवादियों का सफल हो जाना हमारी अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा करता है। वैसे हमारे जवान उनके मुठभेड़ में शहीद नहीं हुए। जिस तरफ से आतंकवादियों ने हमला किया, वहां अस्थायी तौर पर जवानों के लिए टेंट लगाए गए थे। जिस समय हमला किया वह सोने का ही समय था। इसलिए उनके हथगोलों से आग लगी और देखते-देखते विनाश हो गया।

यह सही है कि उरी पहाड़ों और जंगलों से घिरा होने के कारण आतंकवादियों की गतिविधियों का पता करना मुश्किल होता है, पर नियंत्रण रेखा के एकदम निकट होने के कारण वह उनके निशाने पर होगा इसका आभास तो सबको था ही। 5 दिसम्बर 2014 को इसी इलाके में आतंकवादियों के हमले में 10 जवान शहीद हुए थे। यह हमला हुआ भले 18 सितम्बर को है, लेकिन इसकी तैयारी काफी पहले से की गई होगी। आतंकवादियों को पूरा नक्शा समझाया गया होगा, कहां से प्रवेश करना है, हमला कहां से आरंभ करना है? यह बगैर बड़े आधारभूत संरचना के नहीं हो सकता है।

पाकिस्तान सरकार अगर कड़ाई करता तो ऐसा हो ही नहीं सकता था। इसलिए पाकिस्तान के सिर इसका आरोप तो जाता ही है कि व अपनी धरती का इस्तेमाल हमारे यहां आतंकवाद निर्यात करने के लिए कर रहा है|पठानकोट हमले से इसकी तुलना करें या न करें; यह अलग विषय है। किंतु भारत के लिए एक दिन में यह असाधारण क्षति है,  इससे आतंकवादियों का मनोबल बढ़ता है। इसके बाद उन्होंने और आगे और हमले करने की कोशिश की कुछ पुलिस चौकियों पर भी हमला हुआ है। यह कहना गलत नहीं होगा किआतंकवादियों के कई समूह घुसपैठ कर चुके हैं और कई घुसपैठ करने की फिराक में हैं। वे बर्फ जमने के पहले जम्मू-कश्मीर की धरती को लहूलुहान करने के अपने षड्यंत्र को कामयाब करना चाहते हैं। प्रकारांतर से यह हमारे खिलाफ युद्ध है। प्रश्न है कि क्या हम इस युद्ध का मुंहतोड़ जवाब देने की रणनीति अपना भी रहे हैं?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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