अंतत: मुख्यमंत्री के सामने आ ही गए फर्जी मीडिया को पालने के परिणाम

भोपाल। सरकारी खजाने से फर्जी मीडिया को पालने के परिणाम अंतत: सामने आने ही लगे। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना दर्द बुधवार को मंत्रालय में हुई मंत्री और अधिकारियों की एक संयुक्त मीटिंग के दौरान बयां किया। उन्होंने पूछा कि जब 'विभागों में काम अच्छा हो रहा है तो मीडिया में निगेटिव खबरें ही क्यों छपतीं हैं। अच्छी खबरें भी छपना चाहिए।'

हर सरकार चाहती है कि उसकी सफलताएं भी जनता के सामने आएं। योजनाओं का प्रचार प्रसार हो और ज्यादा से ज्यादा लोग उसके लाभ ले सकें। मप्र में इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जनसंपर्क संचालनालय बनाया गया है। संचालनालय के अधिकारियों की जिम्मेदारी है कि वो उन तमाम मीडिया संस्थानों के संपर्क में रहें जिनकी पहुंच आम जनता तक है। 

समस्या क्या है 
परंतु मध्यप्रदेश में ऐसा हो नही रहा है। खुद मुख्यमंत्री चाटुकारिता करने वाले पत्रकारों के कॉकस में घिरे रहते हैं। सीएम के इर्द गिर्द घूमने वाले पत्रकार सीएम को महिमा मंडित करने वाले लेख छापते हैं और उन्हें दिखाते भी हैं। सीएम खुश होकर सरकारी विज्ञापन और सुविधाएं देते हैं परंतु जिन अखबारों/टीवी चैनलों/बेवसाइटों पर ऐसे लेख छपते हैं, उन्हें जनता पढ़ती ही नहीं। असलियत तो यह है कि वो पढ़ने के लिए जनता के बीच उपलब्ध ही नहीं हैं। संचालनालय के अधिकारी भी इसी तरह जी हुजूरी करने वाले मीडिया संस्थानों से घिरे रहते हैं। बड़ी बड़ी बातें करने वाले कई मीडिया संस्थान सरकारी खजाने से हर माह लाखों उड़ा ले जाते हैं, लेकिन उनके प्रकाशन/प्रसारण छोटे छोटे भी नहीं हैं। 

करना क्या होगा
करना यह होगा कि संचालनालय के अधिकारियों को उन मीडिया संस्थानों तक पहुंचना होगा जो सचमुच जनता के बीच लोकप्रिय हैं, लेकिन ना तो सीएम हाउस की परिक्रमा करते हैं और ना ही संचालनालय के अधिकारियों की चाटुकारिता। इन्हीं मीडिया संस्थानों ने मप्र में शिवराज विरोधी लहर ना केवल पैदा कर दी है बल्कि तेजी से चला रहे हैं। संचालनालय को यह शर्त भी हटानी होगी कि यदि सरकारी विज्ञापन चाहिए तो निगेटिव न्यूज छापना बंद करना होगा। हां, इतना हो सकता है कि इस तरह के प्रकाशनों में सरकार की योजनाएं और सफलताएं भी छपना शुरू हो जाएं। मर्जी है आपकी, क्योंकि सरकार है आपकी। 

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