मोबाईल : बाज़ार को सेवा में बदलें

राकेश दुबे@प्रतिदिन। जिस देश में एक अरब से ज्यादा मोबाइल कनेक्शन हों, वहां ज्यादा सेवा दरों के सारे तर्क अपने आप ध्वस्त हो जाते हैं। हमसे जरा सा आगे पड़ोसी चीन को छोड़ दें, तो इतना बड़ा बाजार दुनिया में कहीं नहीं है। इस बाजार का महत्व हम इसी बात से समझ सकते हैं कि पूरी दुनिया में इस समय मोबाइल कनेक्शन की संख्या आठ अरब से भी कम है। अमेरिका जैसे आधुनिक देश का मोबाइल बाजार भारत का एक तिहाई ही है।

इतना बड़ा बाजार सभी कंपनियों को यह संभावना देता है कि वह लोगों को सस्ती सेवा देकर भी अच्छा कारोबार कर सकें और मुनाफा कमा सकें। इसलिए भी भारत में मोबाइल और इंटरनेट दरों को नीचे आना चाहिए था। बेशक, फिलहाल यह एक नई कंपनी के बाजार में आने से शुरू हुई स्पद्र्धा के कारण हुआ है, मगर यह ऐसी जगह थी, जहां हमें पहुंचना ही था।

देश में लगभग हर किसी के हाथ में मोबाइल फोन होना और बातचीत व डाटा की दरों का नीचे आना भारतीय संचार की दुनिया का एक नया अध्याय है। इसका पिछला अध्याय तब शुरू हुआ था, जब भारत ने निजीकरण की ओर कदम बढ़ाए थे। देश के जो श्रमिक संगठन आज रक्षा क्षेत्र के निजीकरण को लेकर एक दिन की हड़ताल कर रहे हैं, वे तब संचार क्षेत्र के निजीकरण को लेकर इसी तरह की हड़तालें, आंदोलन, धरने, प्रदर्शन वगैरह करते थे। यह उस समय की बात है, जब टेलीफोन सिर्फ लैंडलाइन हुआ करता था और बड़े-बड़े शहरों में भी उसका कनेक्शन पाना आसान नहीं होता था।

देश के बहुत से कस्बों और गांवों तक तो यह पहुंचा ही नहीं था। निजीकरण और नई तकनीक से शुरू हुए सिलसिले ने फोन को देश के कोने-कोने और लगभग हर घर में पहुंचा दिया। श्रमिक संगठनों को लगता था कि निजीकरण से बड़ी संख्या में हाथ बेरोजगार हो जाएंगे, लेकिन पिछले दो दशक में रोजगार के जितने अवसर संचार क्षेत्र में पैदा हुए हैं, उतने कम ही क्षेत्रों में पैदा हुए हैं। हालांकि यहां तक पहुंचने में हमने तमाम उतार-चढ़ाव भी देखे। कई तरह के घोटालों, स्पेक्ट्रम व डाटा सेवाओं के लिए आसमान छूती बोली लगने के कारण एक दौर में कंपिनयों को सेवाओं के दाम काफी ऊंचे रखने पड़े। मोबाइल सेवा तो बढ़ी, मगर मोबाइल डाटा सेवाओं का विस्तार उस तेजी से नहीं हो सका, जिस तेजी की उम्मीद स्मार्टफोन के इस युग में थी।

इस समय ट्राई जैसी दूरसंचार क्षेत्र की नियामक संस्थाओं की भूमिका भी बढ़ गई है। अब उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि सस्ती सेवा का मतलब कहीं खराब सेवा न हो। पिछले कुछ साल में मोबाइल सेवा का जिस तेजी से विस्तार हुआ है, उस तेजी से उसका इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं बढ़ा है। अब भी कॉल ड्रॉप होने, नेटवर्क सिग्नल न मिलने, डाटा नेटवर्क के हर जगह एक जैसा न काम करने की समस्याएं बहुत आम हैं, जो मोबाइल ग्राहकों के लिए बड़ी परेशानी का कारण भी हैं। ट्राई के तमाम वादों के बावजूद इस दिशा में ज्यादा प्रगति नहीं हुई है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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