खदान मालिक से नवरात्रि का चंदा मांगने गए 7 बच्चों की लाशें मिलीं

गुना।
नवरात्रि महोत्सव के लिए चंदा जमा करने निकले 7 बच्चों की लाशें एक खदान में पड़ी मिलीं हैं। इस खदान में पानी भरा हुआ था। सभी बच्चे 10 से 14 साल उम्र के हैं। ये सभी खदान मालिक से चंदा मांगने के लिए घर से निकले थे। इसके बाद इनकी लाशें मिलीं। पुलिस इसे हादसा बताने की कोशिश कर रही है परंतु अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि बच्चे खुद पानी में डूब गए या उन्हे पानी में डुबाया गया है। खदान यशवंत अग्रवाल की बताई जा रही है। 

शहर के करीब 5 किलोमीटर दूर पिपरोदाखुर्द गांव में एक खदान है, जहां एक बड़े गड्ढे में पानी भरा हुआ है। वहीं रविवार को ये हादसा हुआ। बच्चे नवरात्रि में झांकी के लिए चंदा मांगने खदान के मालिक के पास आए थे। इसके बाद सभी की मौत की खबर आई। सारे बच्चों की लाशें 40 फीट गहरे गड्डे में मिलीं हैं। इनमें 2 सगे भाई थे। 

प्रथम सूचना ही रहस्यमयी
इस घटना की पहली सूचना ही संदेह पैदा करती है। जितेंद्र सिंह भार्गव ने पुलिस को इस घटना की सूचना दी लेकिन जितेन्द्र भार्गव का कहना है कि उन्होंने बच्चों को डूबते नहीं देखा। बकौल भार्गव दोपहर करीब 2.15 बजे का समय था। मैं क्रशर पर पेमेंट देने आया था। एक बच्चा मेरे पास दौड़ता हुआ आया और बोला- ‘बच्चा पानी में डूब गया है। मैं और कुछ लोग दौड़कर गड्‌ढे के पास पहुंचे तो देखा कि एक बच्चा किनारे के पास है। वह नीला पड़ चुका था। उसे हिलाया और पेट दबाया, लेकिन उसमें हलचल नहीं हुई। इसके बाद मैंने पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने गांव वालों की मदद से तलाश की तो पानी में से एक के बाद एक छह और बच्चों के शव निकले। मैंने उस बच्चे को भी खोजा जो आवाज लगाते हुए आया था। लेकिन वह नहीं मिला।

सवाल यह है कि खदानों में अक्सर मजदूरों के बच्चे होते हैं और उन्हें सभी जानते हैं। फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि जिसे बच्चे ने जितेन्द्र को सूचना दी, वह अज्ञात हो। 
सवाल यह भी है कि जितेन्द्र बच्चे की सूचना पर बिना बच्चे को साथ लिए सीधे सही गड्डे पर कैसे पहुंच गए जबकि वहां कई गड्डों में पानी भरा हुआ है। 
सवाल यह भी है कि जब बच्चे की लाश किनारे पर तैरती मिल गई थी तो पुलिस ने पूरे गड्डे की सर्चिंग क्यों की। जबकि एक बच्चे की मौत की सूचना थी और लाश भी मिल गई थी। 

यशवंत अग्रवाल के नाम पर है खदान
खदान किसकी है इसको लेकर भी कंफ्यूजन क्रिएट किया गया। प्रशासन ने बताया कि खदान चंद्रशेखर भार्गव की है लेकिन क्षेत्रीय लोगों ने प्रशासन के दावे को झूबा बताया। प्रत्यक्षदर्शी जितेन्द्र भार्गव ने दावा किया कि खदान यशवंत अग्रवाल के नाम है। प्रशासन से जब दोबारा पूछा गया तो उसने भी स्वीकार किया कि खदान यशवंत ​अग्रवाल के नाम है। सवाल यह है कि यशवंत अग्रवाल के नाम को छुपाने की कोशिश क्यों की जा रही थी। 

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