राकेश दुबे@प्रतिदिन। पाकिस्तान में हुए सार्क सम्मेलन के पहले से ही इस तरह के संकेत थे कि भारतीय मंत्री के साथ पाकिस्तान का संवाद औपचारिक ही होगा। यह आशंका सच साबित हुई, जब पाक गृह मंत्री अपनी ही मेजबानी में आयोजित दोपहर के भोज में शामिल नहीं हुए। ऐसे में, राजनाथ सिंह ने भोज में शामिल नहीं होने का फैसला किया। पाक सेना और नवाज शरीफ सरकार इस पर सहमत थी कि कश्मीर के घटनाक्रम को देखते हुए वह भारतीय मंत्री की मेजबानी करते हुए नहीं दिखना चाहती। इसलिए वहां के मीडिया ने न तो राजनाथ सिंह के दौरे को कवर किया, न ही सार्क सम्मेलन में दिए उनके भाषण को।
भारत और पाकिस्तान के बीच की खाई दोनों की टिप्पणियों से स्पष्ट है। पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ऑपरेशन जर्ब-ए-अज्ब और पिछले वर्ष आतंकवाद के खिलाफ शुरू किए गए नेशनल ऐक्शन प्लान के जरिये आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान की लड़ाई का दावा करते हैं। इस पर परोक्ष रूप से प्रतिक्रिया देते हुए राजनाथ सिंह ने संसद में कहा कि पाकिस्तान ने अब तक आपराधिक मामलों पर आपसी सहयोग से संबंधित सार्क कन्वेंशन की पुष्टि नहीं की है, या सार्क आतंकवाद अपराध निगरानी डेस्क और सार्क ड्रग अपराध निगरानी डेस्क को अपनी सहमति नहीं दी है। इन बयानों से गुस्सा झलक रहा था|
मोदी सरकार की पाकिस्तान नीति उतार-चढ़ाव वाली रही है। पिछले वर्ष 25 दिसंबर को जब प्रधानमंत्री मोदी ने अचानक नवाज शरीफ के जन्मदिन पर लाहौर का दौरा किया था, तब दोनों मुल्कों के रिश्ते ऊंचाई पर दिख रहे थे। दोनों नेता हाथ में हाथ डालकर टहलते दिखे थे, और मोदी ने शरीफ की पोती के निकाह के अवसर पर शरीफ के रिश्तेदारों से भी बातचीत की। पर उसके एक हफ्ते बाद जब पठानकोट हमला हुआ, तो दोनों मुल्कों के रिश्ते बिगड़ गए। तबसे दोनों देशों के बीच रिश्ते सामान्य नहीं हैं। और अब जम्मू-कश्मीर की अशांति के दौरान जब पाकिस्तान भारत पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगा रहा है, रिश्ते लगातार खराब हो रहे हैं।
पहले भारत-पाकिस्तान ने समग्र वार्ता प्रक्रिया के जरिये इसे आगे बढ़ाया था, पर परवेज मुशर्रफ की सरकार के पतन के बाद यह प्रक्रिया थम गई। इसकी महत्वपूर्ण उपलब्धि यह थी कि सीमापार आतंकवाद, भारत में आतंकी हमले में कमी आई थी और चार सूत्री फार्मूला तैयार किया गया था, जिससे कश्मीर मुद्दे का समाधान हो सकता था। हालांकि 2008 के मुंबई हमले के बाद बातचीत की प्रक्रिया पटरी से उतर गई। इसकी वजह यह है कि पाक सेना ने कश्मीर पर चार सूत्री फॉर्मूले का समर्थन करने , या पाकिस्तान में पनाह लिए आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने से इन्कार दिया। उसने ऐसा करने से आसिफ अली जरदारी की सरकार को रोक दिया और अब नवाज शरीफ सरकार को भारत के साथ संबंध सुधारने या भारतीय पहल का सकारात्मक जवाब देने से रोक रही है। तो फिर हम कहां से शुरुआत करें?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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