तसल्ली के लिए तो मोदी के जज्बात ही काफी..!

जबलपुर। सब्र... अनुकंपा आश्रितों के मामले में इस शब्द की अलग ही परिभाषा हो सकती है। दो, चार, दस नहीं बल्कि 1366 दिन बीत गए सड़क किनारे बैठकर न्याय की उम्मीद में। हाल के दिनों में पीएमओ ने इस मामले में रुझान दिखाया है, इनकी तकलीफ समझी और प्रदेश सरकार को फरमान भी दिया। हैरानी वाली बात यह है कि मुख्य सचिव की ओर से कोई कार्यवाही नहीं की गई। दूसरी ओर अभी भी खाली हाथ बैठे अनुकंपा आश्रितों का कहना है कि "प्रधानमंत्री की तरफ से जो जज्बात जाहिर किए गए, हमारी तसल्ली के लिए वही काफी हैं।' 

प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से हाल ही में प्रदेश सरकार के चीफ सेक्रेट्री को चिट्ठी लिखकर पूछा गया है कि अनुकंपा आश्रितों के मामले में अब तक कार्यवाही क्यों नहीं की गई। पत्र में यह भी कहा गया है कि पिछले निर्देशों पर एक्शन क्यों नहीं लिया गया। सरकार जो भी जवाब दे, लेकिन पीएमओ का खत आश्रितों को सुकून जरूर दे गया है। अनुकंपा आश्रित दल के संयोजक असगर खान का कहना है कि इसके अलावा राष्ट्रपति तथा उर्जा मंत्रालय से भी रहमदिली दिखाई गई है।

लेकिन प्रदेश सरकार न जाने क्यों पत्थर दिल बनी हुई है।
1 अनुकंपा आश्रितों की ओर से 16 मार्च 2016 को केन्द्रीय विद्युत मंत्रालय को पत्र लिखा गया। इसमें अनुकंपा नियुक्ति पर राहत की प्रार्थना की गई।
1 -मंत्रालय ने संवेदना जाहिर करते हुए 30 मार्च को ही प्रदेश सरकार के प्रधान सचिव ऊर्जा विभाग को कार्यवाही करते हुए सूचित करने के निर्देश दिए।
2 -इस मसले पर 16 मार्च को ही एक अन्य पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजा गया। पत्र में आश्रितों की परेशानियों को प्रमुखता से शामिल किया गया।
2 - पीएमओ ने चौथे दिन ही 21 मार्च को इस पर रिप्लाई दिया। प्रदेश सरकार के चीफ सेक्रेट्री को पत्र भेजा गया और कार्यवाही के निर्देश दिए गए। 
3 - 9 मई को अनुकंपा आश्रित दल के संयोजक की अोर से फिर एक पत्र पीएमओ को लिखा गया और प्रदेश शासन के रुझान न लेने की बात कही गई।
3 - चौबीस घंटे के भीतर अगले दिन 10 मई और अब हाल ही में पीएमओ ने चीफ सेक्रेट्री को पत्र भेजा है और कार्यवाही कर जानकारी देने के निर्देश दिए हैं।
4 - अनुकंपा आश्रितों की ओर से 9 मई को राष्ट्रपति को पत्र भेजा गया। इसमें आश्रितों ने राहत की प्रार्थना के साथ अब तक के संघर्ष का ब्यौरा दिया।
4 -राष्ट्रपति भवन ने भी 23 मई को प्रदेश सरकार के चीफ सक्रेट्री के नाम पत्र जारी किया और उचित कार्यवाही के लिए निर्देशित किया गया।
300 कराेड़ रुपयों का राजस्व हासिल होता रहा है मंडल के दौरान। उस वक्त भी अनुकंपा नियुक्ति सहित अन्य सभी तरह की सुविधाएं दी जाती रही हैं।
1700 करोड़ रुपए तक पहुंच गया कंपनियों का राजस्व, वहीं कर्मचारियों की संख्या भी घटकर आधी हो गई, लेकिन अब न सुविधा है और न ही रियायत।

क्या है मामला?
वर्षों से अनुकंपा नियुक्ति की राह ताक रहे आश्रित परिवारों के लिए प्रदेश सरकार ने नीति तो लागू की, लेकिन मौत के मामलों को ही बांट दिया। ऐसे प्रावधान रखे गए कि 15 नवम्बर 2000 से 10 अप्रैल 2012 के बीच मृत हुए हुए बिजली कर्मियों के मामले में सिर्फ उन्हीं में अनुकंपा नियुक्ति दी जाएगी, जिसमें मौत ड्यूटी के दौरान हुई हो। गौर करने वाली बात यह है कि कंपनी 2012 के बाद से सभी तरह के मामलों में अनुकंपा नियुक्ति देगी। मृत्यु चाहे किसी हादसे में गई हो या  कि फिर नेचुरल डैथ। ड्यूटी के दौरान मृत्यु होने का मामला भी स्पष्ट नहीं है। आश्रितों का कहना है कि मौत को अलग-अलग प्रावधानों में बांटना गलत है।

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