शराब बंदी के लिए भी कुछ कीजिये, मोदी जी !

राकेश दुबे@प्रतिदिन। नितीश कुमार के पैतृक गाँव कैलाश पुरी में शराबबंदी की हुकुमुदुली करने के कारण पूरे गाँव पर सामूहिक जुर्माना हुआ है। शराबबंदी बिहार में  गुजरात की तर्ज़ पर लागू नहीं हो सकी। भाजपा अपने अन्य शासित राज्यों में इसे लागु करने की कोई योजना अब तक नहीं बना सकी है। शराब को आधुनिक जीवन शैली का एक हिस्सा मानने वाले लोग बहुतेरे हैं, लेकिन देश के जनमानस का बड़ा हिस्सा आज भी शराब को सामाजिक बुराई की तरह देखता है। कहा जाता है कि इसी वादे के चलते महिलाओं ने नीतीश कुमार के पक्ष में बड़ी संख्या में मतदान किया था। शराब की सामाजिक बुराइयां जो भी हैं, उनका सबसे बड़ा शिकार महिलाएं ही होती हैं। फिर महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में शराब की एक भूमिका अक्सर पाई ही जाती है।

शराबबंदी का अर्थ सिर्फ एक कारोबार को रोक देना भर नहीं है। यह कई बाधाओं के बीच से गुजरते हुए समाज और उसकी सोच को बदलना है। शराब एक ऐसी लत भी है, जिसे छोड़ना हमेशा से टेढ़ी खीर रहा है। फिर यह काम जिस तंत्र के भरोसे होता है , उसे भी इसके लिए तैयार करना काफी कठिन काम है । सरकारी तंत्र अक्सर सामाजिक बुराइयों के प्रति या तो अपनी आंखें बंद रखता है, या फिर कानूनी दबाव के चलते उनके खिलाफ अनमने ढंग से कदम उठाता है। फिर हर जगह यह कहा जाता है कि अगर शराब बंद हुई, तो राजस्व तेजी से नीचे चला जाएगा। जिन सरकारों  के पास ज्यादा संसाधन नहीं हैं। उनके लिए तो शराबबंदी ऐसी चुनौती है। नई सरकार के बनते ही बिहार में शराबबंदी को किसी कार्यक्रम की बजाय शुरू में एक जागरूकता अभियान की तरह चलाया गया। सरकारी कर्मचारियों, विधायकों और यहां तक कि मंत्रियों से शपथ-पत्र भरवाए गए कि वे शराब नहीं पिएंगे। स्कूली बच्चों ने शपथ-पत्र भरे कि वे अपने घर में किसी को शराब पीने नहीं देंगे। इसी अभियान से बने माहौल के बीच प्रशासनिक स्तर पर शराबबंदी को जमीन पर उतारा गया।

भारतीय जनता पार्टी शासित राज्यों में राजस्थान अपने कारणों से और छतीसगढ़ अपने कारणों से शराब बंदी लागू नहीं कर रहे हैं। हरियाणा और मध्यप्रदेश में इसके लिए सरकरी मुहीम मद्यनिषेध सप्ताह के अतिरिक्त कहीं दिखती नहीं है। आज़ादी के 70 वे वर्ष में इस विषय  में पूरे देश में जागरूकता का संकल्प तो लिया ही  जा सकता है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Accept !