मध्यप्रदेश: भ्रष्टाचार की कहानी की गैर जिम्मेदार निगहबानी

राकेश दुबे@प्रतिदिन। मध्यप्रदेश के भाजपा सांसदों और संघ परिवार के अनुषांगिक संगठनो ने अपने पितृ सन्गठन से जो-जो कहा उससे यह साबित होता है की या तो सरकार ने जान बूझकर आँखें मूंद कर रखी है या उसके उद्देश्य कुछ और रहे हैं। दबे स्वर में सभी ने उस कुशलता पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा किया जिसे प्रतिपक्ष का सफाया या कुशल राजनीतिक प्रबन्धन कहा जाता है। संघ का उद्देश्य, अपनी वैचारिक दिशा में सरकार का रुख मोड़ना रहा है। इस उद्देश्य पूर्ति की आड़ में भाजपा ने जो किया वह खुलकर सामने आया और अब गेंद संघ के पाले में है। प्रदेश के आगामी विधान सभा चुनाव तक सरकार भ्रष्ट करार दिए गये नौकरशाहों के साथ इसी तरह कदमताल करेगी, प्रतिपक्ष पोषण और तर्पण की प्रक्रिया यथावत रहेगी और प्रचार के नाम मनमाने निर्णय चलेंगे। इन बिन्दुओं पर निर्णय आना है और यह निर्णय प्रदेश में भाजपा का भविष्य तय करेगा।

प्रदेश में पिछले वर्षों में जो भी घटा उसके लिए “भ्रष्ट नौकरशाह और उन पर ढीली नकेल” मुद्दा बनाकर संघ के विश्लेष्ण कार्यक्रम को समारोप की और भेजने में भाजपा सफल नहीं हो सकी। उलटे एक पूर्व मुख्य सचिव ने तो सार्वजनिक रूप से ऐसी बातों पर एतराज़ भी उठाया है। उनका एतराज अपनी जगह सही है, पर यह भी उतना ही सही है कुछ घोड़े अपनी हार्स-पावर से ज्यादा तेज़ दौड़े और दौड़ रहे हैं। सवार अपने स्वार्थों के कारण चाबुक नहीं फटकारते हैं।

यह तो पत्थर पर लिखी इबारत की तरह साफ़ है जितने कांड पिछले दिनों उछले, चले दबे या दबाये गये उसमे कहीं न कहीं और किसी न किसी रूप में नौकरशाही शामिल रही है, पर आज सवाल उठा रहे राजनीतिक आकाओं से है कि तब आपने क्यों नहीं कहा कि ये घोडा इतना तेज़ क्यों दौड़ रहा है। दौड़ने में 20 प्रतिशत हिस्सेदारी यदि घोड़े ने मांगी तो, आप उसे एक कडक चाबुक देने के स्थान पर उसकी लीद समेटते रहे। सही मायने में सरकार रनिवास की सम्पन्नता के आगे चमकती रही। अब घोड़ों की बला तबेले के सर आ गई है, तबेला घोड़ों का तो कुछ कर नहीं सकता  “हाली” और “साईस”  बदल सकता है। पर, कब पता नहीं।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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