गंभीर आपराधिक मामलों में राजीनामा कर सकते हैं या नहीं | Might compromise or serious criminal cases

मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट 09/07/2016 ने पीड़िता से शादी करने के आधार पर बलात्कार के मामले को खारिज करने की मांग कर रहे एक व्यक्ति को यह कहते हुए राहत देने से इनकार कर दिया कि गंभीर अपराधों में अपराधी और पीड़ित के बीच सुलह को बिल्कुल ही कोई कानूनी मान्यता नहीं है।मोहम्मद फैजान अमीर खान लिव इन पार्टनर से झूठे वादा कर उससे कई बार कथित बलात्कार करने के सिलसिले में आईपीसी की धारा 376 के तहत अपने विरुद्ध दर्ज केस को खारिज करने की मांग करते हुए हाईकोर्ट पहुंचा था। 

आरोपी खान ने अपनी याचिका में दावा किया कि उसके और उसके पार्टनर के बीच कुछ गलतफहमी थी जिससे वह नाराज हो गई और उसने एफआईआर दर्ज करा दी, लेकिन अब विवाद सुलझ गया है और दोनों ने आपस में शादी कर ली है। 

जस्टिस एन.एच. पाटिल और जस्टिस पी.डी. नाईक की बैंच ने कहा कि आरोपी के आचरण की निंदा करने की जरूरत है। यह उल्लेख किया जा सकता है कि यह अहसास होने के बाद कि केस दर्ज कराया जा चुका है और पुलिस उसे ढूंढ रही है, वह मुम्बई आया और कथित रूप से शादी को अंजाम दिया।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि आरोपी का दृष्टिकोण संदेह के दायरे में है। परिस्थितियों के हिसाब से याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता ने विधिवत शादी कर ली, लेकिन हम केस रद्द करने के पक्ष में नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि हत्या, बलात्कार, डकैती जैसे गंभीर अपराधों में अपराधी और पीड़ित के बीच सुलह की बिल्कुल भी कोई कानूनी मान्यता नहीं है।

अभियोजन के अनुसार शिकायकर्ता वर्ष 2011 में उत्तर प्रदेश के रहने वाले आरोपी से मिली जिसके बाद दोनों ने अपने रिश्ते की शुरुआत की। वर्ष 2014 में आरोपी नौकरी के लिए मुम्बई आ गया और उसने लड़की से उसके साथ रहने के लिए कहा जिस पर वह राजी हो गई। दोनों ने शारीरिक संबंध बनाए, जिसके बारे में पीड़िता का कहना है कि वह इसलिए राजी हो गई क्योंकि आरोपी ने उससे शादी का वादा किया था लेकिन इस साल जनवरी में आरोपी पीड़िता को सूचित किए बगैर ही उत्तर प्रदेश चला गया। जब पीड़िता ने उससे संपर्क किया तो उसने कहा कि वह वापस नहीं आ रहा, और वह उससे शादी भी नहीं करेगा। इस पर पीड़िता ने शिकायत दर्ज करा दी।

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