दलित प्रश्न तुरंत समाधान की जरूरत

राकेश दुबे@प्रतिदिन। देश में नए सिरे से दलित प्रश्न उभर रहा है  और इस बार उत्तर प्रदेश  चुनाव के कारण  इतना  गंभीर और संवेदनशील हो गया है कि यदि कोई ठोस उपाय नहीं हुए तो सारे  देश को इस आंच का सामना करना पड़ेगा। हर राजनैतिक दल की पहली जिम्मेदारी बनती है कि वह इस अन्याय को मिटाने के लिए जो कुछ संभव हो करे। सबसे पहले खासकर गुजरात में अपील करनी चाहिए कि वहां आत्म हत्या जैसा  रास्ता न अपनाएं। उत्तर प्रदेश में बातचीत का तरीका ठीक किया जाये, दोनों ही और से की गई बयानबाज़ी और अब हो रही नारेबाजी और प्रदर्शन गलत हैं।

गुजरात, आत्म हत्या या समस्याग्रस्त जगह से पलायन कोई हल नहीं है इससे तो उलटे अत्याचार ढाने वालों को ही बल मिलता है। जान देने की जगह मजबूत होने की दरकार है। यह बड़ी विडंबना है कि राजनीति घूम-फिर कर वहीं आ जाती है। शायद यह विडंबना पूरी दुनिया में देखने को मिलती है कि जिन अन्याय और अत्याचार को मिटाने के लिए युगांतरकारी आंदोलन हुए, क्रांतिकारी व्यवस्थाएं कायम की गई। कुछ दशकों बाद वही मसले कुछ नए सन्दर्भों और सवालों के साथ खड़े हो जाते हैं।

हमारे देश में तो इसकी अनगिनत मिसालें जब-तब देखने को मिल जाती हैं। दलित प्रश्न ऐसा ही है, जिस पर कम से एक सदी से तो देश में गंभीर विमर्श और राजनैतिक सक्रियताएं चल रही हैं। महात्मा गांधी ने तो दलित, अमानवीय उत्पीड़न की शिकार पंचम वर्ण कही जाने वाली जातियों के उत्थान को देश की आजादी से अधिक अहम माना था। सवाल यह नहीं है कि देश की आजादी के 66 साल बाद भी उस महात्मा के ही गृह राज्य में दलितों के साथ ऐसा बरताव कैसा हो रहा है कि लोग इसके खिलाफ आत्म हत्या का रास्ता अपनाने लगते हैं।

लगभग देश के हर कोने से ऐसी खबरें आ रही हैं। इस आरोप-प्रत्यारोप में शायद उलझने की दरकार नहीं है कि किस पार्टी के राज में यह सबसे अधिक हुआ या हो रहा है। उत्तर प्रदेश में बसपा के उभार और दलित जातियों में आई मजबूती के बाद भी मायावती को अपशब्द कहने की जुर्रत कैसे हुई ? और उसके बाद बसपा के लोगों ने जो किया वह भी अक्षम्य नहीं है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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