
इस अभियान से कश्मीर में कट्टरपंथी नेताओं पर सवाल खड़े हो गए हैं। लोगों को इस विषय से भटकाने के लिए नेताओं ने प्रोपोगंडा शुरू कर दिए हैं। कट्टरपंथी नेता ने सुझाव संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून के नाम पर खत लिखकर दिए। उन्होंने पत्र की प्रति यूएनएससी प्रमुख, सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, रूस और फ्रांस, इस्लामिक राष्ट्र संघ, यूरोपीय संघ के सदस्य देशों, सार्क, आसियान के अलावा पाकिस्तान, तुर्की के प्रधानमंत्रियों, सऊदी अरब के बादशाह, चीन और ईरान के राष्ट्रपतियों को भेजी है।
गिलानी ने कहा है कि मैं यह खत जम्मू कश्मीर के प्रताड़ित और गुलामों सी जिंदगी व्यतीत कर रहे लोगों की तरफ दुनिया का ध्यान दिलाने के लिए लिख रहा हूं। कश्मीर के हालात अत्यंत दयनीय हैं। उन्होंने कहा कि कश्मीरियों को आत्मनिर्णय का अधिकार नहीं दिया जा रहा है और न संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों को लागू किया जा रहा है। कश्मीर में एक लाख से ज्यादा लोग अपने हक ए आजादी के लिए जान दे चुके हैं।
कश्मीर संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त की अगुआई में भारत द्वारा कश्मीर में किए जा रहे युद्घ अपराध की जांच बिठाई जाए। यह जांच उसी तरह होनी चाहिए जिस तरह से श्रीलंका सरकार के खिलाफ हो रही है। गिलानी ने कहा कि छह सुझावों पर अमल किया जाए। उनके सुझावों में जम्मू-कश्मीर को विवादित मानना, विसैन्यीकरण, अफस्पा और पीएसए कानून को खत्म करना, कश्मीरियों के सियासी अधिकार बहाल करना शामिल हैं।