
इंदौर निवासी मीना की शादी अप्रैल 1984 में तराना उज्जैन निवासी महेश से हुई थी। दोनों पढ़े-लिखे थे। शादी के बाद उन्होंने सांवेर में स्कूल खोला और उसे चलाने लगे। 3 अप्रैल 95 को मीना ने जहर खा लिया। उसे इलाज के लिए एमवायएच लाया गया जहां उसकी मौत हो गई। मामले की जांच के दौरान पुलिस को मीना के लिखे पत्र मिले। मृत्यु पूर्व लिखे एक पत्र में उसने पति महेश से नोकझोंक होने की बात लिखी थी।
यह भी लिखा था कि पति ने उसे मायके में आयोजित एक मांगलिक कार्यक्रम में शामिल नहीं होने दिया। इससे वह आहत थी। सेशन कोर्ट ने महेश को 29 सितंबर 1997 को चार साल कारावास की सजा सुनाई। आरोपी ने सेशन कोर्ट के आदेश को एडवोकेट मनीष यादव के माध्यम से हाई कोर्ट में चुनौती दी। इसमें कहा कि पति-पत्नी दोनों पढ़े-लिखे थे। वे सफलतापूर्वक जीवन यापन कर रहे थे।
छोटी-मोटी नोकझोंक दांपत्य का हिस्सा होती है। इसे आत्महत्या का कारण नहीं माना जा सकता। मांगलिक कार्यक्रम में शामिल नहीं होने देना एक साधारण बात है। शुक्रवार को कोर्ट ने फैसला जारी कर दिया। जस्टिस एससी शर्मा ने महेश को बरी करने का आदेश दिया। कोर्ट ने टिप्पणी की कि पति-पत्नी के बीच नोकझोंक सामान्य बात है। इसे आत्महत्या के लिए प्रेरित करने की वजह नहीं मानी जा सकती।