
पाकिस्तान का नाभिकीय प्रसार रिकॉर्ड भी बहुत खराब है। इसके विपरीत, भारत पर नाभिकीय प्रसार करने के प्रयास का एक भी मामला नहीं है। चीन का उद्देश्य पाकिस्तान की सदस्यता दिलाने से ज्यादा भारत के प्रवेश को रोकना है। भारत ने अपनी कूटनीति तथा अमेरिका के सहयोग से दुनिया के ज्यादातर देशों का समर्थन हासिल कर लिया है। भारत का विरोध करने वाले अन्य देशों तुर्की, आयरलैंड, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, आस्ट्रिया आदि के सुर भी बदले हैं। इन देशों ने पहले चीन की आपत्ति का समर्थन किया था,इनका कहना था कि भारत को एनएसजी की सदस्यता देना नाभिकीय अप्रसार को झटका होगा। अगर इन देशों के सुर बदले हैं तो चीन अकेला पड़ सकता है। रूस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं राष्ट्रपति पुतिन से बात की थी। तो क्या चीन का विरोध भारत के एनएसजी में प्रवेश को रोक देगा? एनएसजी में एक भी सदस्य का विरोध ऐसा कर सकता है?
क्या चीन भारत से संबंध खराब करने की सीमा तक अड़ियल होगा? यह बड़ा प्रश्न है। अमेरिका ने सभी देशों से भारत के अप्रसार रिकॉर्ड को देखते हुए इसकी सदस्यता का समर्थन करने की अपील की है। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने पत्र लिखकर भारत के पक्ष में आम राय बनाने को कहा है। भारत ने हाल में जैसा समर्थन प्राप्त किया है, यह उसकी ताकत है। भारत के लिए इस समूह में प्रवेश वर्तमान विश्व व्यवस्था आवश्यक है। वैसे भारत-अमेरिका नाभिकीय सहयोग समझौते को एनएसजी द्वारा आठ वर्ष पूर्व मान्यता दे देने के बाद भारत काफी हद तक बंदिशों से मुक्त हो चुका है, लेकिन नाभिकीय व्यापार की पूर्ण स्वतंत्रता के लिए इसकी सदस्यता अपरिहार्य है। भारत को अपनी कूटनीति की सम्पूर्ण ताकत झोंक देनी चाहिए ताकि वियना में होने वाली पूर्ण बैठक में हमारे पक्ष में फैसला हो जाए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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