कनस्तर में भरते ही नदी का पानी घी में बदल गया था

राजेन्द्रपन्त‘रमाकान्त’/भवाली। मानव समाज के उत्थान के लिए योगी संतों का समय समय पर इस बसुंधरा में पर्दापण होता रहा है। इसी भूमि पर साधना करके संतों ने संसार में ज्ञान का जो प्रकाश फैलाया उसकी महत्ता समूचा विश्व जानता है। देवभूमि उत्तराखण्ड की धरती में स्थित कैची मंदिर विराट स्वरूप के धनी विश्व प्रसिद्व संत नीम करौली महाराज की अमूल्य धरोहर है, इनकी उपमा परोपकारी संतो में अतुलनीय है। हिमालय की गोद में बसा उत्तराखण्ड का यह क्षेत्र प्रकृति की अमूल्य अलौकिक धरोहर है। यहां की पावन रमणीक वादियों में पहुंचते ही सांसारिक मायाजाल में भटके मानव की समस्त व्याधियां यूं शांत हो जाती है, जैसे अग्नि की लौ पाते ही तिनका भस्म हो जाता है। 

यहां के एतिहासिक धरोहर रूपी रमणीय गुफाएं, सुंदर मनभावन मंदिर यहां आने वाले हर आगन्तुकों को अपनी ओर आकर्षित करने में पूर्णतः सक्षम हैं। ऋषि-मुनियों की अराधना व तपःस्थली के रूप में प्रसिद्ध इस पावन भूमि के पग-पग पर देवालयों की भरमार है। सुन्दर झरने कल-कल धुन में नृत्य करती नदियां अनायास ही पर्यटकों व श्रद्धालुओं को बरबस ही अपनी ओर आकर्शित कर लेते हैं। देवभूमि उत्तराखण्ड की आलौकिक वादियों में से एक दिव्य रमणीक लुभावना स्थल है ‘कैंची धाम’।

‘कैंची धाम’ जिसे ‘नीम किरौली धाम’ भी कहा जाता है, उत्तराखण्ड का ऐसा तीर्थस्थल है, जहां वर्षभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। अपार संख्या में श्रद्धालु व भक्तजन यहां पहुंचकर अराधना व श्रद्धा के पुष्प ‘श्री किरौली महाराज’ के चरणों में अर्पित करते हैं। हर साल 15 जून को यहां एक विशाल मेले का आयोजन होता है। भक्तजन यहां पधारकर अपनी श्रद्धा व आस्था को व्यक्त करते हैं, कहा जाता है कि यहां पर श्रद्धा एवं विनयपूर्वक की गई पूजा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती। यहां पर मांगी गई मनौती पूर्णतया फलदायी कही गई है। इस क्षेत्र के आस्थावान भक्त बताते है। ‘बाबा नीम किरौली महाराज’ महान योगीराज थे।

नैनीताल जनपद में भवाली के समीपस्थ स्थित इस मंदिर की स्थापना को लेकर कई रोचक कथाएं जनमानस में खासी प्रसिद्ध हैं। ‘बाबा नीम करौली महाराज’ की अनुपम कृपा से ही इस स्थान पर मंदिर की स्थापना की गई। कहते हैं कि 1962 के आसपास ‘श्री महाराज जी’ ने यहां की भूमि पर कदम रखा। जब वे सन् 1962 के लगभग यहां पहुंचे तो उन्होंने अनेक चमत्कारिक लीलाएं रचकर जनमानस को हतप्रभ कर दिया। 

एक चमत्कारिक कथा के अनुसार माता सिद्धि व तुलाराम शाह के साथ ‘बाबा नीम किरौली महाराज’ किसी वाहन से जनपद अल्मोड़ा के रानीखेत नामक स्थान से नैनीताल को आ रहे थे। अचानक वे ‘कैंची धाम’ के पास उतर गये। इस बीच उन्होंने तुलाराम जी को बताया कि श्यामलाल अच्छा आदमी था, उन्हें यह बात अच्छी नहीं लगी, क्योंकि श्यामलाल जी उनके समधी थे। भाषा में ‘था’ के उपयोग से वे बेरूखे हो गए। खैर किसी तरह मन को काबू में रखकर वे अपने गंतव्य स्थल को चल दिये। बाद में उन्हें जानकारी मिली कि उनके समधी का हृदय गति रूकने से निधन हो गया। कितना अलौकिक दिव्य चमत्कार था ‘बाबा नीम किरौली महाराज’ का कि उन्होंने दूर घटित घटना को बैठे-बैठे ही जान लिया। इस तरह की अनेक चमत्कारिक घटनाएं ‘बाबा नीम किरौली महाराज’ से जुड़ी हैं।

इसके अलावा एक बार यहां आयोजित भंडारे में ‘घी’ की कमी पड़ गई थी। बाबा जी के आदेश पर नीचे बहती नदी से कनस्तर में जल भरकर लाया गया। उसे प्रसाद बनाने हेतु जब उपयोग में लाया गया तो वह जल में ‘घी’ परिणित हो गया। इस चमत्कार से आस्थावान भक्तजन नतमस्तक हो उठे। एक अन्य चमत्कार के अनुसार ‘बाबा नीम किरौली महाराज’ जी ने एक बार गर्मी की तपती धूप में एक भक्त को बादल की छतरी बनावकार उसे उसकी मंजिल तक पहुंचाया। इस तरह एक नहीं अनेक चमत्कारों की किंवदंतियां जुड़ी हुई हैं ‘नीम किरौली महाराज’ से। 

माना जाता है, कि बाबा जी का जन्म अकबरपुर आगरा जिले के एक सामान्य ब्रह्मण परिवार में 19वी शताब्दी के आखरी पडाव में हुआ था बचपन में माता पिता इन्हें लक्ष्मी नारायण कहकर बुलाते थे। इन्होनें हनुमान जी की साधना की थी। इसी साधना के बल पर एक बार नीम करौरी गांव में इन्होनें एक बार ट्रेन की गति विराम कर दी थी आम जनमानस में प्रचलित दतंकथा के अनुसार इन्हें टीटी ने चैकिग के दौरान नीचे उतार दिया था लाख प्रयास के बाद भी जब गाडी आगे न बढ सकी तब बाबा से क्षमा याचना के बाद गाडी चली। 

हिमालय की भूमि में बाबा जी का आगमन 40 के दशक के आसपास माना जाता है। हनुमानगढी में हनुमान जी का मंदिर बाबा जी की भक्ति का ही पैगाम है यही नही देश के अनेक भागों में इन्होनें हनुमान मदिर भक्तों के कल्याण के लिए बनवाए गरीबों की सेवा को ही मानव जीवन की सार्थकता कहने वाले संत नीम करौली महाराज की अन्तिम लीला का क्षेत्र योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण की नगरी वृदावन रही है। हनुमान जी की महिमा की ज्योति का प्रचार प्रसार इनके जीवन का लक्ष्य रहा सौ से अधिक देशों में महाराज जी के आश्रम है। 

जनश्रुती के अनुसार बाबा जी का विवाह 11 वर्ष की आयु में हो गया था और 13 साल की अवस्था में इन्होंने घर छोड दिया था। उत्तराखण्ड व देश विदेश के अनेक भागों में आपने हनुमान मंदिर बनवाये जिनमें कैची धाम एक है, इसके अलावा बाबा जी की प्रेरणा से पिथौरागढ में गणाई से आगे हनुमान मदिर काफी प्रसिद्व है, जहां इनके परम शिष्य ऋशिकेष गिरी महाराज तपस्यारत है ,साथ ही गेठिया भूमियाधार के हनुमान मंदिर काफी प्रसिद्व है। 

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