भोपाल। ये बिल्कुल वैसा ही था जैसे मोहल्ले का शरारती बच्चा आपकी कार पर गोबर फैंककर भाग जाता है। कार का कुछ नहीं बिगड़ता, अलबत्ता आपको थोड़ा परेशान जरूर होना पड़ता है और शरारती बच्चे को इससे बहुत खुशी मिलती है। राज्यसभा में विनोद गोटिया को उतारकर भाजपा ने कुछ ऐसा ही किया। 2 सीटें भाजपा की थीं और तीसरी सीट पर कांग्रेसी ही आना था। यह सुनिश्चित था फिर भी भाजपा ने हाश हुश किया। विनोद गोटिया पूरे 12 वोटों से हार गए। विवेक तन्खा को 62 वोट मिले जबकि गोटिया 50 पर सिमट गए।
कांग्रेस को एकजुट कर दिया
भाजपा के इस कदम ने पहली बार कांग्रेस को एकजुट कर दिया। यह भाजपा के लिए नुक्सानदायक है। पहली बार कांग्रेस के तमाम दिग्गज एकराय नजर आए। कमलनाथ के कंधों पर इस चुनाव का जिम्मा था। तन्खा के जीतने से कमलनाथ का कद बढ़ गया। हार्स ट्रेडिंग का तमाशा होने के बाद कमलनाथ को प्रमुख रणनीतिकार माना जाएगा। ऐसा उस समय हुआ जबकि कमलनाथ मप्र में अपना भविष्य तलाश रहे हैं। वो सीएम केंडिडेट बनना चाहते हैं या फिर मप्र कांग्रेस के अध्यक्ष। भाजपा के उपक्रम ने कमलनाथ को वजन दे दिया।
पहले दिन ही हार गई थी भाजपा
संख्या बल के हिसाब से बीजेपी तीसरी सीट पर पहले दिन से पीछे थी। माना जा रहा था कि बीएसपी विधायकों को अपने पक्ष में करके वह मुकाबला रोचक बना सकती है, लेकिन मायावती के व्हिप के बाद चार वोट कांग्रेस के खाते में चले गए। जब बीजेपी ने गोटिया के रूप में निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा किया तो माना जा रहा था कि उन्हें जिताने के लिए प्रदेश संगठन पूरी ताकत झाेंक देगा, लेकिन संगठन ऐसा नहीं कर सका। उल्टा शवयात्रा पर लेटी कांग्रेस की सांसें लौट आईं।