राकेश दुबे@प्रतिदिन। सरकार ने विलय के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है जो भारतीय स्टेट बैंक ने अपने पांच सहयोगी बैंकों के साथ महिला बैंक का भी स्टेट बैंक में विलय के लिए पिछले महीने भेजा था|इस विलय के बाद भारतीय स्टेट बैंक की परिसंपतियां बढ़कर 37 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक हो जाएगी, जिससे भारतीय स्टेट बैंक विश्व के शीर्ष 50 बैंकों में शामिल हो जाएगा| भारतीय स्टेट बैंक के पांच सहयोगी बैंक की 6400 शाखाएं और 38000 कर्मचारी हैं, जबकि भारतीय स्टेट बैंक के 2,22,023 कर्मचारी और 16,000 से भी अधिक शाखाएं हैं| विलय के बाद भारतीय स्टेट बैंक के 50 करोड़ से अधिक ग्राहक, 22000 से अधिक शाखाएं और 58000 से अधिक एटीएम हो जाएंगे. चूंकि, पहले भारतीय स्टेट बैंक के साथ स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र और स्टेट बैंक ऑफ इंदौर का विलय किया जा चुका है| इसलिए, इस संबंध में किसी नए फार्मूले का प्रश्न ही नहीं है।
हां, इस विलय में 1660 करोड़ रुपये खर्च आने की संभावना ग्लोबल रेटिंग एजेंसी ‘मूडीज’ द्वारा जताई गई है, जो पूंजी की कमी से जूझ रहे भारतीय स्टेट बैंक के लिए जरूर चिंता की बात है|इसके अलावा विलय को लेकर पांच सहयोगी बैंकों के यूनियनों के विरोध का सामना भी भारतीय स्टेट बैंक को करना पड़ेगा| सरकार का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए देश में बड़े एवं विस्तरीय बैंकों की जरूरत है| सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का आपस में विलय देश हित में है|
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के आपस में विलय के लिए रोडमैप बैंक बोर्ड ब्यूरो तैयार कर रहा है. माना जा रहा है कि भारतीय स्टेट बैंक और उसके पांच सहयोगी बैंकों और देश के एकमात्र महिला बैंक के आपस में विलय के बाद दूसरे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय की प्रक्रिया में और भी तेजी आएगी|सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आपस में मिलाकर बड़े बैंक में तब्दील करने की एक लंबी प्रक्रिया है, जिसके लंबे समय तक चलने की संभावना है|वर्ष, 2003 के बाद से इस मुद्दे पर कई बार विचार किया गया, लेकिन कोई ठोस रणनीति नहीं तैयार की जा सकी| सरकार के पास सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय के संबंध में अनेक सुझाव हैं, जिसमें सबसे व्यावहारिक सुझाव आरएस गुजराल की अध्यक्षता में बनी समिति की रिपोर्ट है|समिति ने सरकार को अपनी रिपोर्ट जनवरी, 2012 में दी थी, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आपस में मिलाकर 7 बड़े बैंक बनाने का सुझाव दिया गया था| बैंकों के समूहों का निर्णय मानव संसाधन, ई-गवर्नेस, आंतरिक लेखा-परीक्षा, धोखाधड़ी, सीबीएस (कोर बैंकिंग साल्यूशन) एवं वसूली को आधार बनाकर लिया गया है| प्रश्न यह है की इस निर्णय में इतनी देर क्यों हुई और अब जल्दी क्यों है ?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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