दंत चिकित्सा शिक्षा: तबेलों की बला, घोड़ो के सिर

Bhopal Samachar
राकेश दुबे@प्रतिदिन। वैसे कहावत घोड़ों की बला तबेले के सिर है, परन्तु भारत में दंत चिकित्सा के क्षेत्र में यह कहावत उलटी हो गई है। देश में सरकारी और गैर सरकारी दंत चिकित्सा कालेज खोलने की अनुशंसा डेंटल काउन्सिल आफ इण्डिया करती है। मेडिकल काउन्सिल आफ इण्डिया की भांति, देश में डेंटल काउन्सिल आफ इण्डिया भी संविधान के अंतर्गत बनी संस्था है। देश के सरकारी क्षेत्र को छोडकर निजी क्षेत्र में डेंटल कालेज खोलने में इसकी सर्वाधिक रूचि दिखाई देती है। 

चिकित्सा विज्ञान के विदयार्धियों के लिए दंत चिकित्सा एक विषय कभी था अब यह पूर्ण पाठ्यक्रम है। विश्व स्वास्थ्य सन्गठन का मापदंड 1000 व्यक्तियों पर एक दंत चिकित्सक का है, भारत में यह मापदंड कभी पूरा हो सकेगा इसके दूर-दूर तक आसार नजर नहीं आते है। कारण डेंटल कालेजों की स्थापना है। जी हाँ! जिस तरह से ये कालेज खुले और खोले जा रहे है तबेलों की बला घोड़ों के सर आ गई है। घोड़ों को तैयार करने वाले अस्तबल को बोल चाल की भाषा में तबेला कहा जाता है। 

आंकड़ो की दृष्टि से देखें, तो पूरे देश के सभी राज्यों में मिलाकर 20 सरकारी डेंटल कालेज हैं। किसी राज्य में एक तो किसी राज्य में दो। जहाँ 2 हैं, वहाँ और जहाँ 1 है वहां, सभी विषयों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में अध्धयन की सुविधा नहीं है। इसके विपरीत नेता, अधिकारी और नव धनाढ्यो द्वारा खोले गये कालेजो में करोड़ो रूपये की फ़ीस पर स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम उपलब्ध है।  स्नातक पाठ्यक्रम में भारी राशि देकर भर्ती होने वाले छात्र अब इस व्यवसाय के सिरमौर बने हुए हैं। लगभग 300 निजी कालेजों में लगभग सभी में मेनेजमेंट कोटा में प्रवेश दिलाने के के लिए ऐसे ही दंत चिकित्सकों का सहारा सुलभ है।

सरकारी कालेज में प्राध्यापक बने, दंत चिकित्सक अपना सारा कौशल सरकारी जमावट और निजी व्यवसायों में लगाते देखे जा सकते है। जिनके दवाखाने चले तो ठीक नहीं तो दूसरे धंधे तो हैं ही। इनमें से अधिकांश ने अपने कालेज में निरीक्षण के दौरान की नामचीन वरिष्ठो के दर्शन किये है, बाकी क्लासेस का समय कभी किसी के साथ तो कभी किसी के साथ बिताया है। स्नातक को बाज़ार में 5000 रूपये प्रतिमाह का काम मिलना मुश्किल है। गाँव में जाना नहीं चाहते पितृ ऋण से मुक्ति के लिए अन्य उपाय अपनाने की मजबूरी है। नये डेंटल कालेजो में काली आमदनी के स्रोत सूखते देख कालेजो की रूचि अब सिर्फ स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम जारी रखने में रह गई है स्नातक पाठ्यक्रम की तो पहले ही हथिया ली गई है। एक ही केम्पस में 3 और उससे अधिक डेंटल कालेज 1 ही मिल्कियत में चलते थे। अब निर्धारित फ़ीस पर भी प्रवेश देने की मजबूरी है।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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