वेश्याओं को भी बलात्कार की रिपोर्ट लिखाने का अधिकार: हाईकोर्ट

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लखनऊ। अक्सर देखा जाता है कि एक लड़की के साथ जब बलात्कार होता है तो पूछताछ के नाम पर ऐसे सवाल किए जाते हैं। जिनका जवाब देना पिड़ीत के लिए मुश्किल भरा होता है। खासकर उसके बलात्कार से संबंधित सवालों के मामले में। दुराचार के एक मामले में आरोपियों की ओर से दाखिल अपील पर सुनवाई के दौरान पीड़िता के चरित्र पर लांछन लगाने पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने सख्त एतराज जताया है। 

कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि एक वेश्या के भी नैतिक, मौलिक और सामाजिक अधिकार होते हैं। उसे स्वतंत्रता है कि किसी व्यक्ति को वह अपने साथ यौन संबंध बनाने की अनुमति दे या न दे। जिस मामले में कोर्ट ने ये एतराज जताया है। वो 30 साल पुराना बताया जा रहा है। मामला उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले का है। जिसमें कोर्ट ने अपनी सख्त प्रक्रिया दी है।

आपको बता दें कि मामला करीब 30 वर्ष पुराना है। बताया गया कि एक नाबालिग पीड़िता के अपहरण और दुराचार के आरोप में सत्र न्यायालय ने राम प्रकाश उर्फ राजा और सुशील को दोषी ठहराते हुए पांच-पांच साल कैद और जुर्माने की सजा सुनाई थी। जिसके बाद दोनों आरोपियों ने सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। अपील पर सुनवाई के दौरान राम प्रकाश उर्फ राजा के अधिवक्ता ने पीड़िता के चरित्र पर लांछन लगाने का प्रयास किया। 

न्यायमूर्ति आदित्य नाथ मित्तल की एकल सदस्यीय पीठ ने अपने फैसले में इस पर सख्त एतराज जताते हुए कहा कि अपीलार्थी राम प्रकाश की ओर से दलील दी गई है कि पीड़िता एक व्याभिचारिणी लड़की थी। इसलिए उसके खिलाफ झूठा मुकदमा लिखाया था। सत्र न्यायालय में हुई जिरह का अवलोकन करने से भी स्पष्ट होता है कि वहां भी चरित्र हनन का प्रयास किया गया।

आरोपी की तरफ से दी गई दलील पर अदालत ने कहा, 'इस मामले में पीड़िता एक शादीशुदा महिला है और प्रत्येक औरत का आत्मसम्मान और मर्यादा होती है।' अपीलार्थी के अधिवक्ता की पीड़िता के खराब चरित्र की महिला होने संबंधी दलील की कोई प्रासंगिकता नहीं है। यह प्रकट होता है कि अपीलार्थी के मन में एक महिला की मर्यादा और आत्मसम्मान का कोई लिहाज नहीं है। 

न्यायालय ने आगे कहा कि यदि एक वेश्या भी दुराचार की रिपोर्ट लिखाती है और आरोप में सच्चाई दिखती है तो ऐसा कोई कानून नहीं जिसके आधार पर उसके बयान को खारिज कर दिया जाए। कोर्ट ने कहा कि यह बहुत पीड़ादायक है कि पीड़िता के आत्मसम्मान और मर्यादा को अनावश्यक ही पहले सत्र न्यायालय में चोट पहुंचाई गई और फिर इस अदालत में भी यही किया गया। 

न्यायालय के विचार से एक महिला व्याभिचारिणी हो या वेश्या, बिना उसकी सहमति के उससे संबंध बनाने या उसकी लज्जाभंग करने का अधिकार किसी को नहीं है। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा, 'यदि लड़की व्याभिचारिणी थी तो अपीलार्थी अपना पवित्र मुंह उससे लगाने ही क्यों गए? इसके साथ ही कोर्ट ने दोनों आरोपियों की अपील को खारिज करते हुए सत्र अदालत द्वारा सुनाई सजा को बरकरार रखा।'

कोर्ट के इस फैसले से जहां पीड़िता का परिवार खुश है वही आरोपी पक्ष फैसले पर सवाल खड़ा कर रहा है। आरोपी पक्ष का कहना है कि पीड़िता के हक में फैसला देना सही नहीं है। वही पीड़ित लड़की का कहना है कि उसे आज खुशी है कि कम से कम कोर्ट ने तो उसके साथ हुई नाइंसाफी को समझा और उसका साथ दिया।
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