
जायका एक्सपर्ट ने शनिवार को हुई दो दौर की बैठक में साफ लहजे में नगरीय प्रशासन संचालनालय के अफसरों से कहा कि 0.3 प्रतिशत ब्याज पर लोन देने से उन्हें आखिर क्या फायदा है? उन्हें तभी इस सौदे में फायदा होगा, जब ज्यादा से ज्यादा तकनीकी सामग्री जायका की एसोसिएट कंपनियों से खरीदी जाए।
जायका टीम ने ट्रैक के एलाइनमेंट और ग्रेडिएंट को लेकर उठाई तकनीकी आपत्तियां का संबंध भी जापानी सप्लायर ग्रुप से जुड़ा हुआ था। जर्मनी से आए एलाइनमेंट एक्सपर्ट मैनफील्ड वाइडरमैन और मार्क हेरकेनार्थ से चर्चा के बाद जायका टीम ने स्वीकार किया है कि भोपाल के लिए तैयार कंन्वेशनल लाइट मेट्रो प्रोजेक्ट सबसे आधुनिक है, लेकिन यदि इसके लिए रोलिंग स्टॉक मशीनरी सप्लाई में जापानी कंपनियों की दिक्कत आएगी। जबकि लोन की शर्तों के तहत मेट्रो रेल कंपनी प्रोजेक्ट लागत की 30 फीसदी खरीदी जापानी कंपनियों से करनी है।
जापान के पास मेट्रो की नहीं है एडवांस तकनीक
जायका को 6 स्थानों पर ट्रैक के 100 मीटर टर्निंग रेडियस और दो स्थानों पर 6 प्रतिशत ग्रेडिएंट को लेकर आपत्ति थी। तकनीकी रूप से डीपीआर कंसल्टेंट ने इसे सही साबित कर दिया। इसके बाद जायका टीम को स्पष्ट लहजे में कहना पड़ा कि ऐसे ट्रैक के लिए जापानी कंपनियां रोलिंग स्टॉक (मेट्रो ट्रेन का इंजन और बोगियां) सप्लाई कर पाने की स्थिति में नही हैं। इससे जापानी कंपनियों के 30 फीसदी सप्लाई के हित का क्या होगा?
अपने फायदे के लिए क्यों चितिंत है जायका की टीम
रोलिंग स्टॉक पर हुई चर्चा के दौरान जायका के टीम लीडर तड़ाकी मुकारामी ने साफ कहा कि वे चाहते हैं कि यह सुनिश्चित किया जाए कि मेट्रो ट्रेन और बोगी जापान से ही खरीदी जाए। जायका की चिंता है कि प्रोजेक्ट की कुल लागत का 50 फीसदी खर्च तो सिविल स्ट्रक्चर खड़ा करने और ट्रैक निर्माण पर ही खर्च हो जाएगा। स्टील सप्लाई में जापानी भारत के मुकाबले नहीं ठहर सकते हैं। स्थानीय होने के कारण कंस्ट्रक्शन वर्क भी भारतीय कंपनियां ही करेंगी। दूसरा सबसे बड़ा खर्च रोलिंग स्टॉक यानी मेट्रो ट्रेन और बोगियों की खरीदी पर होना है। यह खर्च 16.4 प्रतिशत है। जायका टीम को आशंका है कि यदि जापानी कंपनियों को रोलिंग स्टॉक सप्लाई नहीं मिली तो जापान को इस लोन के बदले काफी कम फायदा होगा। यदि रोलिंग स्टॉक जापान से आता है तो भविष्य में इसके मेंटेनेंस और पार्ट सप्लाई का काम भी उसी जापानी कंपनी को मिलेगा। मौजूदा डीपीआर के तहत जिस तरह का ट्रैक प्रस्तावित किया गया है, उस तकनीक की आधुनिक तकनीक की ट्रेन जर्मन कंपनियां सप्लाई करती हैं।
जापान की बात मानने से हमें तीन बड़े नुकसान
1. जापान के हिसाब से डीपीआर में बदलाव करने पर हमें एडवांस तकनीक से हाथ धोना पड़ेगा। अभी जर्मन तकनीक में कम यात्री पर भी ऑपरेशन एंड मेंटेनेंस का खर्च एक तिहाई कम है। जरूरत पड़ने पर हम इसकी क्षमता 50 लाख की आबादी तक के लिए बढ़ा सकते हैं। जबकि जापानी की तकनीक में ज्यादा यात्री होने पर ही ऑपरेशन एंड मेंटेनेंस लागत की भरपाई हो सकती है।
2. टर्निंग रेडियस और ग्रेडियंट में बदलाव से सिंधी कॉलोनी, जिंसी, अलकापुरी समेत कई इलाकों में कई मकान तोड़ने पड़ेंगे। अधिग्रहण का खर्च बढ़ेगा तो प्रोजेक्ट कॉस्ट के लिए अतिरिक्त रकम जुटाना चुनौती होगी। विरोध होगा तो प्रोजेक्ट में देरी भी होगी।
3. जापानी कंपनियों को काम मिलने से भारतीय कंपनियों के मौके छिनेंगे। साथ ही यह स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा भी नहीं होगी। यदि ओपन टेंडर होंगे तो दूसरी कंपनियों कम रेट डालेंगी, जिससे प्रोजेक्ट लागत कम हो सकती है।
यह विकल्प भी दिया
मप्र मेट्रो रेल कंपनी लिमिटेड ने जायका टीम को अपने दूसरे प्रोजेक्ट्स में सभी इलेक्ट्रोनिक मशीनरी जापान से खरीदी करने का ऑफर दिया है। इसमें एयर कंडीशनर, जनरेटर, इलेक्ट्रिफिकेशन, रेफ्रिजरेशन, कम्युनिकेशन मशीनरी शामिल है। डीपीआर कंसल्टेंट रोहित गुप्ता की सलाह पर दिए इस प्रस्ताव पर जापानी दल कुछ हद तक सहमत नजर आया, लेकिन उन्होंने अंतिम सहमति नहीं दी।