आरक्षण स्वीकार है, बस यह बदलाव कर दीजिए

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उपदेश अवस्थी @लावारिस शहर। सारे देश में आरक्षण को लेकर बहस चल रही है। आरक्षण के प्रत्याशियों के पास अपनी दलील है, उनके पूर्वजों ने कितने कष्ट सहे, अब सरकारी सुविधाएं चाहिए। सवर्णों के पास अपने डेटा हैं, आरक्षण के कारण सिस्टम में कितनी जंग लगी, देश कितना बर्बाद हो गया। संघ के लेकर शंकराचार्य तक हर संस्थान से इस संदर्भ में ओपीनियन आ रहे हैं। सरकार इस संदर्भ में स्पष्ट कर चुकी है कि वो आरक्षण के खिलाफ कुछ नहीं करेगी। 

लेकिन अब आरक्षण के विरोधी भी संगठित होने लगे हैं। अगले चुनाव में इसका असर दिखेगा। सरकार को सचेत हो जाना चाहिए। मैं इसमें सिर्फ एक संशोधन चाहता हूं। हम संवेदनशील हैं। निर्धनों को आरक्षण के पक्षधर भी हैं परंतु यदि जातिवाद पर आधारित आरक्षण ही जारी रखना है तो बस व्यवस्था में एक बदलाव कर दीजिए। पूरे देश को 2 हिस्सों में बांट दीजिए। एक आरक्षित भारत और दूसरा अनारक्षित भारत। 

  • आरक्षित जातियों की शिकायतों की सुनवाई आरक्षण प्राप्त अधिकारी करे। 
  • आरक्षित जातियों के मामलों की जांच आरक्षण प्राप्त अधिकारी करे। 
  • आरक्षित जातियों के मामलों की सुनवाई आरक्षण प्राप्त जज करे। 
  • आरक्षित जातियों के बीमारों का इलाज आरक्षण प्राप्त डॉक्टर करे।
  • उपरोक्त उदाहरण मात्र है, इस तरह सारा सिस्टम दो हिस्सों में बांट दीजिए।  

जब मामला आरक्षित और अनारक्षित के बीच का हो तो 3 सदस्यीय कमेटी बनाइए, एक आरक्षित, दूसरा अनारक्षित और तीसरा मुसलमान या ईसाई। 
जब वोट मांगते वक्त देश को जातियों में बांटा ही जा रहा है तो सरकार चलाते वक्त भी बांट दीजिए। कम से कम हम और हमारे बालबच्चे किसी आरक्षण प्राप्त डॉक्टर, जज या अधिकारी के शिकार तो नहीं होंगे। 
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