अधिगृहित जमीन मालिकों को वापस लौटानी होंगी: सुप्रीम कोर्ट

राजीव सिन्हा/दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आवासीय योजनाओं के लिए अधिगृहित की गई जमीन उसके वास्तविक मालिक को ही वापस की जा सकती है। न्यायमूर्ति अनिल आर दवे और न्यायमूर्ति आदर्श गोयल की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि बिल्डर के आवेदनों को स्वीकार कर राज्य सरकार द्वारा अधिगृहित की गई जमीन को उसे सौंपने को गलत और संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत बताया है।

वास्तव में हरियाणा के रोहतक में सेक्टर -27 एवं 28 में आवासीय/व्यावसायिक सेक्टर बनाने के उद्देश्य से हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण(हुडा) ने जमीन अधिगृहित की थी। अधिग्रहण की अधिसूचना जारी होने के बाद सरकार ने बिल्डर का आवेदन स्वीकार कर कुछ जमीन उन्हें ट्रांसफर कर दी थी। पीठ ने बिल्डर के नाम जमीन ट्रांसफर किए जाने को फैसले को निरस्त कर दिया है। 

पीठ ने कहा है कि अधिगृहित की गई जमीन को ट्रांसफर करने की बिल्डर के आवेदन को स्वीकार करना गरीबों के संसाधनों को अमीरों को फायदा पहुंचाने के समान है। ऐसा करना किसानों के वजूद और उनकी आजीविका के साथ सौदेबाजी करने जैसी बात है। यह संविधान की धारणा के खिलाफ है। ऐसा करना समानता के मूल अधिकार और संपत्ति व जीने के अधिकार के खिलाफ है। ऐसा न तो प्रत्यक्ष रूप से किया जा सकता है और न ही परोक्ष रूप से।

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है कि जन उद्देश्य या कॉलोनी बसाने के लिए जमीन का अधिग्रहण गलत नहीं है लेकिन बाद में जमीन को बिल्डर को ट्रासंफर करना निजी उद्देश्य के लिए अधिग्रहण करने के समान है। यहां साफ है कि अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू होने के बाद राज्य ने ही बिल्डर को इसमें शामिल होने की इजाजत दी। बगैर सरकार की सहमति से बिल्डर इस प्रक्रिया में नहीं आ पाते। 

कहीं न कहीं सरकार द्वारा आश्वासन मिलने के बाद ही बिल्डर ने इसमें निवेश किया। राज्य को अपनी शक्ति का इस तरह से इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जा सकती। पीठ ने कहा कि अगर बिल्डर ने जमीन मालिकों को पैसे दिए हैं तो उसे मुआवजा माना जाएगा। जमीन मालिकों को इसे लौटाने की जरूरत नहीं है। 
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!