प्रदर्शनों को कुचलकर कर्मचारियों को बागी क्यों बना रही है सरकार

भोपाल। विगत छ दिनों से योजना आर्थिक सांख्यिकी विभाग में कार्यरत संविदा प्रगणक संविदा वृद्वि की मांग को लेकर नीलम पार्क में अनिश्चित कालीन धरने पर बैठे हुये थे। प्रगणकों ने एसडीएम पुराने भोपाल के सामने धरने की अनुमति बढ़ाने के लिए आवेदन दिया तो एसडीएम के द्वारा अनुमति नहीं दिये जाने का कहा गया। प्रगणक धरने की अनुमति के लिए विगत तीन दिन से एसडीएम कार्यालय के चक्कर लगा रहे थे लेकिन लगातार टाला जा रहा था। एसडीएम द्वारा प्रगणकों को धरने की अनुमति नहीं दिये जाने के विरोध में संविदा कर्मचारी अधिकारी महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर के नेतृत्व में प्रगणकों ने मानव अधिकार आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष वीके कंवर को ज्ञापन सौंपा। तथा लोकतंत्रात्रिक प्रक्रिया का गला घोटने के विरोध में मानव अधिकार आयोग के सामने धरना देकर विरोध जताया।

महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर ने बताया कि एक दिन की परमीशन के लिए दस दिन एसडीएम कार्यालय, सीएसपी कार्यालय, संबधित थाना के दस-दस बार चक्कर लगाने पड़ते हैं उसके बाद परमीशन मिल पाती है। अनिश्चितकालीन धरने की अनुमति मांगने पर प्रदान नहीं की जाती है। अनिश्चित कालीन धरने के नाम पर तीन-तीन दिन की अनुमति दी जाती है। फिर अनुमति बढ़ाने के लिए बार-बार एसडीएम कार्यालय, सीएसपी कार्यालय और थाने के दस-दस बार चक्कर लगाने पड़ते हैं। उसके बाद भी अनिश्चित कालीन धरने की नाम पर अधिकतम 6 दिन की परमिशन प्रदान की जाती है। उसके बाद शासन-प्रशासन धरना स्थल पर दबाव बनाने लगते हैं कि हम अनुमति नहीं देंगें आंदोलन समाप्त कर दो। 

पुलिस आकर कहने लगती है कि अनुमति नहीं होगी तो हम आपके टेंट और तम्बू उखाड़कर ले जायेंगें और डन्डे मारकर भगा देंगें। इस प्रकार का अप्रत्यक्ष रूप से प्रशासन दबाव बनाता है और धरने पर बैठने वालों को हतोत्साहित करता है।

रैली की परमिशन तो देते ही नहीं हैं
महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर ने बताया कि प्रशासन कर्मचारी संगठनों को रैली की परमिशन देते ही नहीं है। वहीं सत्ताधारी राजनीति दलों, धार्मिक संगठनों के आयोजनों को शहर के किसी भी स्थान पर रैली, धरना, प्रदर्शन टेंट लगाने की अनुमति प्रदान कर दी जाती है। लेकिन कर्मचारी संगठनों के लिए धरना प्रदर्शन के लिए मात्र एक या दो स्थान ही तय हैं। जबकि लोकतंत्र में सभी को समानता का अधिकार प्राप्त है और प्रत्येक नागरिकों, संगठनों को शांति पूर्वक तरीके से आंदोलन करने का प्रावधान हमारे संविधान में निहित किया गया है। उसके बावजूद सरकार की छवि धूमिल ना हो इसलिए प्रशासन अप्रत्यक्ष रूप से धरना आंदोलन समाप्त करने का दबाव बनाता है। 

क्या सरकार यह चाहती है कि लोग आवाज उठाने के लिए चंबल के बीहड़ में कूदें
यदि सरकार और जिला प्रशासन नागरिकों और संगठनोें को शांति पूर्वक धरने प्रदर्शन की अनुमति नहीं देगा और वो अपनी भड़ास आंदोलनों, धरने, प्रदर्शनों के माध्यम् से नहीं निकालेंगें और सरकार का ध्यान आकर्षित नहीं करेंगे तो न्याय पाने के लिए वो चंबल की बीहड़ में कूदेगें क्या। यदि सरकार ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया का गला घोटा तो इसके दूरगामी परिणाम सरकार को भुगतने होंगें ।

महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर ने कहा है कि जिला प्रशासन के रवैये के विरोध में प्रदेश के समस्त कर्मचारी संगठन आंदोलन करेंगें और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करेंगें। 

दिल्ली के जंतर-मंतर पर क्या होता है
दिल्ली के जंतर मंतर पर संबधित थाना ही दिल्ली में प्रदर्शन और रैली की अनुमति प्रदान कर देता है। दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक ही स्थान पर पचास धरनों की अनुमति प्रदान की जाती है। एक साथ अनेक संगठन वहां पर धरना देते रहते हैं। उसी प्रकार भोपाल में भी धरने की अनुमति थाने के द्वारा स्तर पर ही जारी की जाए। 

धरने/प्रदर्शन की अनुमति जटिल की बजाए सरल हो
महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर ने बताया कि धरने की अनुमति का आवेदन एसडीएम को दिया जाता है, एसडीएम द्वारा संबधित क्षेत्र के पुलिस के सीएसपी को मार्क किया जाता है। पुलिस के सीएसपी के द्वारा संबधित क्षेत्र के थाना प्रभारी को मार्क किया जाता है। थाना प्रभारी अपने मुंशी को मार्क करता है। थाने का मुंशी अनुंशसा लिखकर टीआई को देता है। टीआई सीएसपी को भेजते हैं। सीएसपी एसडीएम को भेजते हैं। एसीडीएम, सीएसपी, थाना प्रभारी ये सभी मैदानी अधिकारी होते हैं। इनके कार्यालय के दस-दस बार चक्कर लगाने के बाद ये लोग मिलते हैं। महासंघ के प्रदेश अध्यक्ष रमेश राठौर का कहना है कि जब थाने के मुंशी और टीआई की अनुंशसा पर ही एसडीएम को अनुमति देना है तो मैदान में धरने प्रदर्शन की अनुमति का अधिकार थाना प्रभारी को ही दे दिया जाए। जिससे एक दिन की अनुमति के लिए दस-दस दिन कार्यालयों के चक्कर लगाने से बचेंगें। 

2005 तक क्या व्यवस्था थी
2005 तक धरने प्रदर्शन की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। संबधित थाना क्षेत्र के थाने में धरना-प्रदर्शन आंदोलन की सूचना दे दी जाती थी और धरना प्रदर्शन कर लिया जाता था। 

सब कर्मचारी संगठन मिलकर करेंगें विरोध
जिला प्रशासन द्वारा कर्मचारी संगठनों के आंदोलन कुचलने के लिए चलाई जा रही दमनात्मक प्रक्रिया का विरोध सभी कर्मचारी संगठनों ने किया है । इसके लिए व्यापक रूप रेखा बनाई जा रही है । जिसके लिए आंदोलन किया जायेगा। 
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