ताजे आरक्षण से उपजे प्रश्न

राकेश दुबे@प्रतिदिन। गुजरात और हरियांना सरकार ने जो जुगत भिड़ाई है क्या उससे आरक्षण की भूख समाप्त हो  जायेगी. मांग उठी क्यों इस पर भी विचार जरूरी है | एक बड़ा प्रश्न है |गुजरात का पटेल समुदाय हो या  हरियाणा का जाट समुदाय, उन्हें इतना पता तो है ही कि आरक्षण प्रावधानों का यह मामला बहुत आगे जाने वाला नहीं है। इन राज्यों में पहले ही जो प्रावधान हैं, उनके अनुसार 49 फीसदी सरकारी नौकरियां आरक्षण के आधार पर दी जा रही हैं। इस आरक्षण को अब बहुत ज्यादा बढ़ाने की गुंजाइश नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जा सकता। जाहिर है कि मामला जब अदालत में पहुंचेगा, तब इन फैसलों पर रोक भी लग सकती है।

इन प्रावधानों का भी वही हश्र हो सकता है, जो राजस्थान सरकार द्वारा गुर्जर समुदाय के आरक्षण के लिए किए गए प्रावधान का हुआ था। लेकिन शायद गुजरात सरकार की सोच दूसरी है। अभी उसके सामने 2017 का चुनाव है। भाजपा पटेल समुदाय की नाराजगी के साथ चुनाव में नहीं जाना चाहेगी। पटेल समुदाय ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभावशाली तो है ही, साथ ही राज्य में उसकी आबादी लगभग 15 फीसदी है। अभी सरकार का इरादा किसी तरह उसे शांत करने का है, और इस मामले में जब अदालत का अंतिम फैसला आएगा, तब तक 2017 के चुनाव निपट चुके होंगे।

पिछले कुछ समय से कई ऐसे समुदाय आरक्षण की मांग करने लग गए हैं, जो पहले खुद को पिछड़े वर्ग में शामिल किए जाने के विरोधी थे। इसकी एक वजह तो यह है कि रोजगार के अवसर बहुत कम पैदा हो रहे हैं। हाल ही में जारी हुए 22 साल के आंकडे़ यह बताते हैं कि इस दौरान 30 करोड़ लोग रोजगार के लिए तैयार हुए, लेकिन इनमें से आधे से भी कम, यानी सिर्फ 14 करोड़ लोगों को रोजगार मिल सका। आरक्षण का ताजा दबाव बनाने के पीछे का एक कारण रोजगार न मिलने से उपजी हताशा भी है। हरित क्रांति का फायदा उठाने वाले जाट और पटेल समुदाय के लोगों का आरक्षण की मांग पर निकल पड़ना कृषि क्षेत्र की दुर्दशा की कहानी कह रहा है। कृषि क्षेत्र में मुनाफा कम होते जाने के कारण अब ये लोग अपने नौजवानों के लिए नौकरियां चाहते हैं, जो उन्हें लगता है कि सिर्फ आरक्षण के जरिये ही मिल सकती हैं। यानी इस समस्या के वास्तविक समाधान दो ही हैं, एक तो कृषि को संकट से उबारना और दूसरे औद्योगिक क्षेत्र में रोजगार के ढेर सारे अवसर पैदा करना। अगर हम सबको रोजगार दे सकें, तो आरक्षण के बहुत सारे दबाव अपने आप खत्म हो जाएंगे।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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