मप्र के IPS अफसरों को नहीं मालूम IPC और CRPC में अंतर

राधेश्याम दांगी/भोपाल। मप्र के तीन सीनियर आईपीएस अफसरों ने एक आपराधिक प्रकरण में जो लिखा-पढ़ी की वह हास्यास्पद है। तीनों कानून के जानकार हैं, लेकिन उनके पत्रों और जांच रिपोर्ट से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उन्हें दंड प्रक्रिया संहिता और भारतीय दंड संहिता में अंतर ही नहीं पता है। यही नहीं एक अफसर ने तो क्रिमिनल रिट पिटिशन को एसएलपी लिख दिया। 

विशेष पुलिस महानिदेशक साइबर सेल राजेंद्र कुमार, लोकायुक्त की विशेष पुलिस स्थापना में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (पश्चिम) अशोक अवस्थी और पुलिस महानिरीक्षक (प्रशासन) पंकज श्रीवास्तव, ने एक आपराधिक प्रकरण में पत्राचार किया। यह केस साइबर सेल से जुड़ा है, जिसमें पुणे निवासी आरोपी रिनी जौहर-गुलशन जौहर के खिलाफ प्रकरण दर्ज है। आरोपियों ने इस प्रकरण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इसलिए पुलिस के आला अफसरों ने इस प्रकरण की जांच की। जांच रिपोर्ट और उनके द्वारा लिखे गए पत्रों में सीआरपीसी-आईपीसी के बारे में भी लिखा-पढ़ी की गई है। इनके द्वारा लिखे गए पत्र शासन ने सुप्रीम कोर्ट में पेश किए हैं। 

सुप्रीम कोर्ट में 7 अप्रैल को कई पुलिस अफसरों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना है। खास बात तो यह है कि अपराध घटित होने की प्रकृति के आधार पर भारतीय दंड संहिता की संबंधित धारा के तहत प्रकरण दर्ज किया जाता है। इसके बाद आरोपी की गिरफ्तारी और अदालत में पेश करने आदि का कार्य दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों अनुसार किया जाता है। मगर मजेदार बात तो यह है कि देश की सर्वोच्च अदालत में भेजी गई जांच रिपोर्ट में ऐसी कई तथ्यात्मक त्रुटियां हैं, जिससे जाहिर होता है कि पुलिस के वरिष्ठ अफसरों को कानून का बुनियादी ज्ञान ही नहीं है। इस वजह से कोर्ट में मध्यप्रदेश की जग-हंसाई हो रही है। 

अशोक अवस्थी, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (पश्चिम) विशेष पुलिस स्थापना लोकायुक्त संगठन, भोपाल  
साइबर सेल से जुड़े इस प्रकरण में लोकायुक्त पुलिस ने भी पुलिस अफसरों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किए हैं। इसमें अशोक अवस्थी ने पुलिस अफसरों से जो पत्राचार किया, उसमें बताया गया है कि रिनी-गुलशन जौहर ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी (स्पेशल लीव पिटिशन) दायर की है। जबकि रिनी-गुशलशन जौहर ने क्रिमिनल रिट पिटिशन दायर की है, न कि एसएलपी। 

पंकज श्रीवास्तव, पुलिस महानिरीक्षक, प्रशासन  
इन्होंने भी इस प्रकरण में छोटी, लेकिन गंभीर चूक दोहराई। उन्होंने इस आपराधिक प्रकरण की जांच रिपोर्ट तैयार की। इसमें उन्होंने लिखा कि धारा 420 भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों का पालन आरोपियों की गिरफ्तारी में नहीं किया गया है। यानी इन्होंने अपनी जांच रिपोर्ट में आईपीसी की धारा 420 को सीआरपीसी की धारा बता दिया। 

राजेंद्र कुमार, विशेष पुलिस महानिदेशक, साइबर सेल  
इन्होंने इस प्रकरण में भारतीय दंड संहिता की धारा 420 में दिए गए निर्देशों एवं प्रावधानों के अनुसार आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं करने का उल्लेख किया है। जबकि भारतीय दंड संहिता में गिरफ्तारी के प्रावधान ही नहीं हैं। धारा 420 के तहत तो केवल प्रकरण दर्ज किया जाता है। गिरफ्तारी की प्रक्रिया सीआरपीसी में दर्शाई गई है, लेकिन इन्होंने इसे आईपीसी की धारा 420 का उल्लेख किया है। 
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