
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि चीन ने अजहर मसूद पर पाबंदी के प्रस्ताव को विफल किया है। जैश-ए-मुहम्मद पर तो सन 2001 के बाद से पाबंदी लगी हुई है, लेकिन 26/11 के मुंबई हमले के बाद अजहर मसूद पर पाबंदी लगाने के भारतीय प्रस्ताव को चीन ने वीटो कर दिया था। चीन ने प्रस्ताव को वीटो करने की कोई वजह नहीं बताई है, हालांकि यह साफ है कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी विवाद में चीन, भारत का पक्ष लेता हुआ नहीं दिखना चाहता।
अजहर मसूद पर पाबंदी लगने से पाकिस्तान मुश्किल में पड़ जाएगा, क्योंकि पाकिस्तानी सत्ता प्रतिष्ठान से उसके बहुत मित्रतापूर्ण संबंध हैं। वह सेना और आईएसआई के संरक्षण में ही अपना आतंकवाद चलाता है। पाकिस्तान में अजहर मसूद और हाफिज सईद जैसे आतंकवादी सरगनाओं ने सत्ता प्रतिष्ठान और समाज में इतना मजबूत ताना-बाना बुन रखा है कि उन पर हाथ डालना अब सरकार या सेना के लिए चाहकर भी मुमकिन नहीं है। यह संभावना भी कम ही है कि पठानकोट आतंकी हमले की जांच के लिए आया पाकिस्तानी संयुक्त जांच दल इस हमले में अजहर मसूद के शामिल होने की बात स्वीकार करेगा। ज्यादा संभावना यही है कि जांच दल यह कहे कि अजहर मसूद के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं मिले।
हालांकि आतंकवादियों का इस तरह बचाव चीन के दूरगामी हितों के प्रतिकूल है। आतंकवाद की आंच चीन को भी झुलसा रही है। चीन के झिनझियांग प्रांत में रहने वाले उईगुर मुस्लिमों में सरकारी नीतियों के विरुद्ध भारी असंतोष है और आतंकवादी वहां अपनी पैठ बना रहे हैं। इस वजह से चीन में कई आतंकवादी वारदात हुई हैं, लेकिन फिलहाल चीन को अजहर मसूद जैसे लोगों को बचाने में फायदा नजर आ रहा है। इतिहास बताता है कि आतंकवाद आखिरकार अपने संरक्षकों को ही शिकार बनाता है। हमें विचार करना होगा कि भाई बंदी कब तक और क्यों ?
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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