
परिवर्तन एक शाश्वत प्रक्रिया है | प्रचारक जीवन से राजनीति में आते ही “राजनीतिक चमक” उस तत्व को सबसे पहले प्रभावित करती है, जिन्हें संघ के संस्कार कहते हैं | पहले भी सन्गठन मंत्री आये, गये लेकिन सब कुछ एक गरिमा के साथ हुआ | इस बार गरिमा तो दूर, एक मिसाल बन गया और नागौर का संकेत साफ हो गया कि कड़े निर्णय शुरू हो गये हैं, बड़े भी जल्दी होंगे | ख़ैर, सुहास जी का स्वागत करने भाजपा की वह फ़ौज तैयार हो गई है, जिसने हमेशा लड्डू खाए हैं, सतर्कता की चेतावनी के साथ, स्वागत !
मंत्रियों के भविष्य का निर्णय उनका रिपोर्ट कार्ड करेगा | संघ के साथ भाजपा अध्यक्ष और मुख्मंत्री के विचार क्षेत्र का यह निर्णय होता है | सन्गठन से इतर कोई व्यक्ति यदि किस मंत्री के बारे में कोई भविष्यवाणी करने लगे तो निश्चित ही सन्गठन की कमजोरी है, एक आयोग के अध्यक्ष की एक मंत्री के बारे में यह टिप्पणी “इनके दिन पूरे हो गये” चर्चा में है | मंत्री मजबूत या अध्यक्ष इस पर कयास लगने लगे हैं | अध्यक्ष जी ने मंत्री जी के एक अधिकारी को बदलवाने की कलगी को अपने मुकुट में खोंस लिया है और प्रचार करने लगे हैं कि उनके बिना भाजपा और संघ में पत्ता भी नहीं हिलता | पता नहीं पहले वे .........!
भाजपा को २०१८ के लक्ष्य को सामने रखकर निर्णय करना होगा | संघ के विचार पर चलने वाले इस दल के कुछ स्तर पर अभी यह भाव शेष है |”व्यक्ति से बड़ा दल और दल से बड़ा देश” इस भाव पर चले तो बेडा पार | नही तो लोग आते हैं, जाते हैं | कुछ अच्छे कुछ बुरे याद रह जाते हैं |
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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