बिना अनुमति कर्मचारियों को नहीं निकाल सकते प्राइवेट स्कूल: सुप्रीम कोर्ट

नईदिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि स्कूल प्रबंधन अपने किसी भी कर्मचारी को सरकार को नोटिस दिए बिना हटा नहीं सकता। चाहे यह गैरसहायता प्राप्त निजी स्कूल ही क्यों न हों।

ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक स्कूल के ड्राइवर को सेवा से छंटनी करने के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने कर्मचारी को बहाल कर 13 वर्ष का पूरा वेतन (वेतन वृद्धि के साथ) देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि ड्राइवर से इस वेतन पर कोई आयकर नहीं लिया जाएगा और उसे धारा 89 (वेतन के एरियर पर टैक्स नहीं) का पूरा लाभ दिया जाएगा।

कोर्ट के इस आदेश से राज्य सरकार को स्कूलों में कर्मचारी के अनुशासन के मामले में हस्तक्षेप करने की ताकत मिल गई है, जो एक फैसले में समाप्त कर दी गई थी।

इसके साथ ही जस्टिस वी. गोपाल गौड़ा और जस्टिस अमिताव राय ने बुधवार को दिए फैसले में दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट की धारा 8 (2) को रद्द करने के दिल्ली हाईकोर्ट के 12 साल पूर्व के फैसले को भी गलत करार दिया। इस फैसले को गलत करार देने से यह धारा दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट में बरकरार हो गई है। इस धारा के तहत दिल्ली सरकार को दिल्ली में सभी मान्यता प्राप्त स्कूलों के कर्मचारियों के श्रम हितों के संरक्षण की शक्ति मिलती है। यह धारा स्कूलों को निर्देश देती है कि किसी भी कर्मचारी को हटाने या उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई से पहले प्रबंधन राज्य सरकार से अनुमति लेंगे।

हाईकोर्ट ने रद्द की थी धारा
यह धारा दिल्ली हाईकोर्ट ने कथूरिया पब्लिक स्कूल बनाम शिक्षा निदेशालय (2004) के मामले में रद्द कर दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि कर्मचारी के अनुशासन के मामलों मे सरकार को सूचना देने और मंजूरी लेने का प्रावधान त्रुटिपूर्ण है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, नजीर गलत समझी गई
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले में टीएमए पाई (2002) केस की नजीर को गलत समझा है। इस केस में स्कूलों के कर्मचारी की सुरक्षा का मामला नहीं था बल्कि, संविधान पीठ के सामने सवाल यह था कि शिक्षण संस्थानों को स्वतंत्र रूप से बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के चलने का अधिकार है। यह धारा कर्मचारियों के श्रम मामलों में प्रक्रियात्मक संरक्षा के लिए है, इसका स्कूलों की कार्यशैली पर नियंत्रण से कोई संबंध नहीं है।

इस मामले धारा को चुनौती नहीं दी गई थी
दिलचस्प बात यह है कि जस्टिस वी. गोपाल गौड़ा और जस्टिस अमिताव राॠय की पीठ के सामने धारा 8 (2) को निरस्त करने के फैसले को सीधे तौर पर चुनौती नहीं दी गई थी, लेकिन जिस वक्त डीएवी पब्लिक स्कूल, ईस्ट लोनी रोड के ड्राइवर राजकुमार को 2002 में छंटनी करके हटाया गया, उस समय यह धारा वजूद में थी, इसलिए कोर्ट ने इस धारा को निरस्त करने के मुद्दे को भी फैसले में शामिल कर लिया। कोर्ट ने कहा कि उक्त धारा को कानून में शामिल करने के लिए विधायिका को पूरी योग्यता उपलब्ध है, क्योंकि स्कूलों में कर्मचारी का संचालन तय कानून के अनुसार हो, यह देखना सरकार का दायित्व है।

स्कूल ने ड्राइवर की छंटनी की
दिल्ली में 2001 में सीएनजी बसें लागू करने के बाद डीएवी स्कूल ने अपने ड्राइवरों की छंटनी की और निजी सीएनजी बसों को स्कूल में ठेका दे दिया। ड्राइवर राजकुमार ने उसे हटाने के स्कूल के फैसले को चुनौती दी, लेकिन निचली अदालतों ने कहा कि उसे औद्योगिक विवाद एक्ट, 1947 की धारा 25 (एफ) के तहत हटाया गया है और पूरा मुआवजा दिया गया है। उसने कहा कि उसके मामले में शिक्षा निदेशालय से पूर्व अनुमति नहीं ली गई है, लेकिन सभी अदालतों ने कहा कि अतिरिक्त कर्मचारी को कानून के अनुसार हटाया जा सकता है। इस फैसले को राजकुमार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 

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