पढ़िए कथित तानाशाह इंदिरा गांधी के जीवन के कुछ नए खुलासे

नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी चिकित्सक रहे डॉक्टर केपी माथुर की एक पुस्तक आई है। 92 वर्षीय डॉ. माथुर की बुक 'द अनसीन इंदिरा गांधी' में पूर्व प्रधानमंत्री की जिंदगी को लेकर कई ऐसे खुलासे किए गए हैं जो शायद कम ही लोग जानते होंगे। 151 पृष्ठों वाली इस पुस्तक में सफदरजंग अस्पताल के पूर्व चिकित्सक ने 20 साल तक इंदिरा गांधी के साथ जुड़े रहने के अपने अनुभवों को साझा किया है। 

पुस्तक में माथुर ने लिखा है, 
बांग्लादेश युद्ध शुरू होने के अगले दिन उन्होंने देर रात तक कार्य किया था। जब मैंने उन्हें सुबह में देखा तो वह घर की सफाई के कार्यों में व्यस्त थीं। 

1971 के युद्ध के दौरान शांत थीं इंदिरा
3 दिसंबर, 1971 को जब पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया था तो उस समय इंदिरा गांधी कोलकाता में थी और दिल्ली वापस आते समय वह फ्लाईट में बिल्कुल हमेशा की तरह शांत थी। उनका दिमाग निश्चित तौर पर हमले से निपटने की रणनीति तैयार कर रहा होगा। यह वहीं गांधी थी जो 1966 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नर्वस थी।

पहली बार पीएम बनने के बाद नर्वस थी इंदिरा
"प्रधानमंत्री बनने के 1-2 साल के दौरान वह बहुत चिंतित रहने के साथ-साथ दुविधाग्रस्त रहती थीं। उनका कोई सलाहाकार नहीं था और लगभग न के बराबर मित्र थे।" प्रधानमंत्री बनने के शुरूआती दिनों में ही उन्हें पेट की समस्या से जूझना पड़ा था, जो मुझे लगता है कि उसी घबराहट का नतीजा था।"

नौकरों से करती थी पारिवारिक सदस्यों सा व्यवहार
इंदिरा गांधी एक शानदार, मददगार और उपयोगी महिला थीं जो अपने नौकरों के साथ भी पारिवारिक सदस्यों की तरह व्यवहार करती थी और हर एक को उसके नाम से बुलाती थीं। किसी पर गुस्सा नहीं करती थीं। उन्होंने तीन मूर्ति हाउस जाने से इंकार कर दिया था। जब वह घूमने के लिए जातीं थी तो दिल्ली के कनॉट प्लेस के साउथ इंडियन कॉफी हाउस से नाश्ता मगवाया जाता था।

सोनिया को कहतीं थी 'बहूरानी'
राजीव -सोनिया की शादी के बाद प्रधानमंत्री चाहती थीं कि सोनिया को देश के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन से जुड़ना चाहिए। वह जब घर में किसी से सोनिया के बारे में बात करती थी तो उन्हें "बहूरानी" के नाम से संबोधित करतीं थीं। इंदिरा जल्द ही सोनिया को पंसद करने लगीं थी और सोनिया ने बहुत जल्द ही घर की जिम्मेदारियों को संभाल लिया था।

किताबें पढ़नें का था शौक
रविवार और अन्य छुट्टियों के दौरान वह किताबें, विशेषकर महान लोगों की आत्मकथाएं पढ़ती थीं। वह शरीर और दिमाग से संबंधित पुस्तकों को भी पंसद करतीं थीं। कभी-कभी वह लंच के बाद कार्ड्स खेलना भी पंसद करती थीं। उनका पंसंदीदा कार्ड गेम काली मेम था। 

हार को शान से स्वीकारा
1977 में मिली लोकसभा चुनाव की हार को उन्होंने शान से स्वीकार किया था। चुनाव हारने के बाद वो थोड़ा अकेला महसूस करने लगी थीं। उनके पास करने को कुछ नहीं था। कोई फाईल उनके पास नहीं आती थी। उनके पास कोई ऑफिस, कोई स्टॉफ कार, यहां तक कि अपनी कार भी नहीं थी।

धार्मिक होने के साथ-साथ थीं अंधविश्वासी भी
इंदिरा गांधी धार्मिक होने के साथ-साथ अंधविश्वासी भी थी। वह अपने धार्मिक गुरू आनंदमयी मां द्वारा दी गई मोतियों की माला पहनती थीं। उनके एक कमरे में कई देवी देवताओं की तस्वीरें और मूर्तिया थी, शायद वो यहां बैठकर पूजा करती थीं। उन्होंने बद्री-केदार के साथ-साथ कई दक्षिण भारतीय मंदिरों में पूजा-अर्चना की थी। वैष्णो देवी जाने के साथ-साथ वह कई बार तिरूपति भी गईं थीं।
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