डूबता बैंक ऋण समाधान जरूरी

राकेश दुबे@प्रतिदिन। भारत के बैंक डूबते जा रहे हैं, 31 दिसंबर, 2015 तक 24 सूचीबद्ध सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कुल एनपीए 3,93,035 करोड़ रुपये था।अगर इसमें जोखिम वाले कर्जों को जोड़ दिया जाए, तो यह आंकड़ा आठ लाख करोड़ रुपये को भी पार कर जाएगा। रिजर्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र के सभी बैंकों के लिए मार्च, 2017 तक अपनी बैलेंस शीट दुरुस्त कर लेने की समय-सीमा तय कर दी है। इससे इन बैंकों पर दबाव बढ़ गया है। समस्या की गंभीरता को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने स्वत: संज्ञान लेते हुए रिजर्व बैंक से यह कहा है कि वह 500 करोड़ रुपये से ज्यादा के डिफॉल्टर लोगों की विस्तृत जानकारी अदालत में पेश करे। बैंक कैसे उबरे इसके लिए कुछ करना जरूरी है |

सबसे पहले  दीवाला और दिवालियापन संहिता को जल्दी से जल्दी अमली जामा पहनाया जाए। क्रेडिट मार्केट की मजबूती और विकास के लिए यह काफी महत्वपूर्ण है। यह एनपीए को कम करने में भी काफी कारगर होगा। विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत में एक बीमार कंपनी को बंद करने में चीन के मुकाबले करीब दोगुना वक्त लग जाता है। इसके अलावा, बैंकों का बुरा कर्ज भी बढ़ रहा है (29 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कहना है कि 2013-15 के दौरान 1.14 लाख करोड़ रुपये डूब कर्ज के रूप में फंसे थे)। साथ ही, कॉरपोरेट डेब्ट री-स्ट्रक्चरिंग (सीडीआर), बीमार औद्योगिक इकाइयों को लेकर बने कानून, कंपनी ऐक्ट- 2013 जैसी तमाम चुनौतियां भी सामने हैं। लिहाजा दीवाला और दिवालियापन संहिता को जल्दी से हरी झंडी दिखाई जानी चाहिए।

इसके बाद राजनीति-प्रेरित भ्रष्ट तरीके से बैंकों द्वारा कर्ज दिए जाने की मानसिकता को भी हतोत्साहित करना होगा। कर्ज चुकाने की क्षमता का ठोस आकलन न करने के कारण बैंकों का एनपीए इतना बढ़ा है। लिहाजा बैंकों के ऋण मूल्यांकन और जोखिम प्रबंधन प्रणाली को मजबूत बनाया काफी जरूरी है। इसी तरह, बांटे गए कर्ज (यही आगे चलकर एनपीए बनते हैं) की निगरानी को लेकर भी तंत्र बनना चाहिए।एनपीए की वसूली को लेकर ठोस नीति बनाई जाए। कठोर आर्थिक दंड लगाने की जरूरत है। विलफुल डिफॉल्टर पर आर्थिक दंड ज्यादा से ज्यादा लगना चाहिए, ताकि वे कर्ज दबाने से पहले उसके नतीजे को समझें। यह भविष्य के लिए नजीर बन सकता है।

तकनीक के मामले में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक निजी बैंकों से काफी पीछे हैं। इस वजह से न सिर्फ उनकी क्षमता कम हो जाती है, बल्कि बाजार में उनकी हिस्सेदारी भी कम हो जाती है। लिहाजा प्रतिस्पर्द्धा के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आधुनिक तकनीक से लैस किया जाना चाहिए।
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।        
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com

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