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जलियाँवाला बाग हत्याकांण्ड एक नजर
रोलेट अधिनियम मार्च 1919 में लागू किया गया। विरोध में पूरे देश में आवाज उठी। 6 अप्रैल को अनेक जगहो पर हडतालों काम बंद और प्रदर्शनो के आयोजन किएॅ गऐ। पंजाब में भी रोलेट अधिनियम का विरोध हुआ। पंजाब सरकार ने अनेक जगहो पर लाठी गोली चलवाई। 10 अप्रैल को काँग्रेस के दो प्रभावशाली नेता डाँ, सत्यपाल और डाँ, सैफद्धीन किचलू गिरफ्तार किये। गये, और उन्हे जेल भेज दिया गया।
इन गिरफ्तारियो के विरोध में अमृतसर के जलियाँवाला बाग में 13 अप्रैल बैसाखी के दिन एक सभा हुई यह एक छोटा सा बाग है, जिसके चारो तरफ मकान है। जनरल डायर ने अपने सैनिको को साथ में लेकर जलियाँवाला बाग में दाखिल हुआ। और उसने बाग का जो एक मात्र निकासी द्रार था। उसे घेर लिया। फिर बिना किसी चेतावनी दिये। जब तक गोला बारुद खत्म न हो जाये तब तक निहत्थे। लोगो पर गोली चलाने का आदेश दिया।
सभा में स्त्रिया, बच्चो सहित बृद्ध बूढे। लोग शामिल थे। निहत्थे लोगो पर गोलीबारी लगभग 10 मिनिट तक चलती रही। कोई भी बाहर नही भाग सका। कुछ समय बाद जनरज डायर अपने सैनिको को लेकर चला गया। बाग में सरकारी आकडो के अनुसार लगभग 400 लोग मृत माये गये। और 1200 लोग घायल हुये। कई लोग बाग में स्थित कुआॅ में जिन्दा गिर गये। इस दानवीय कार्य ने पूरे देश में आक्रोश की तीव्र लहर उत्पन्न हो गई। डायर की इस क्रूरता पशुता और जानबूझकर किये गये नरसंहार से अनेक अंग्रेजो की आत्मा तक काॅप उठी। और उन्होने ने भी इसकी निन्दा की।
इस नरसंहार के तत्काल बाद पूरे पंजाब में मार्शल लाॅ लगाकर एक आतंक राज्य कायम कर दिया गया। मगर यह आतंक भी आन्दोल को दवा न सका। डायर ने जिस सैनिक भय के उत्पन्न होने की आशा की थी। वह उत्पन्न न हो सका।
13 मार्च 1940 को ऊधमसिंह नामक का्रन्तिकारी ने पंजाब के पूर्व गर्वनर ओ डायर की गोली मारकर हत्या कर दी। इसी डायर के इंशारे पर जलियाॅवाला बाग की घटना को अंजाम दिया गया था।
प्रमुख प्रावधान: भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम में कुल 20 धाराएँ तथा दो परिशिष्ट थे। इसके प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे-
1. भारत को दो अधिराज्यों - भारत और पाकिस्तान में बाँटना था, गवर्नर जनरल ने 15 अगस्त 1947 को भारत का दायित्व भारतीय नेताओं को सौपा जाना तय किया।
2. अधिनियम के अनुसार प्रज्येक अधिराज्य में एक गवर्नर जनरल होगा, जिसकी नियुक्ति ब्रिटिश सम्राट करेंगे।
3. दोनो अधिराज्यों की सीमाएँ निर्धारित की गयीं। इसके अतिरिक्त जनमत संग्रह के आधार पर बंगाल पंजाब तथा असम के विभाजन तथा उनकी सीमाओं के निर्धारण के सम्बन्ध में बातें तय की गयीं।
4. दोनों अधिराज्यों की संविधान सभाओं को अपना संविधान बनाने का अधिकार होगा। जब तक दोनों राज्य नया संविधान नहीं बना लेते हैं, तब तक 1935 के भारत शासन अधिनियम के द्वारा ही शासन होना था।
5. भारत सचिव का पद समाप्त करके उसके स्थान पर राष्ट्रमण्डल सचिव की नियुक्ति का प्रावधान रखा गया।
15 अगस्त 1947 के बाद ब्रिटिश संसद द्वारा पारित कोई भी कानून भारत पर लागू नहीं होना था। इस प्रकार स्वतन्त्रता अधिनियम प्रभावी होते ही भारत को ब्रिटिश नियन्त्रण से मुक्ति मिल गयी। भारत की स्वतन्त्रता एक नये युग के आरम्भ का सूचक थी। भारतीयों को अपना भाग्य निर्माण करना था।
15-15 अगस्त की आधी रात को दिल्ली में संविधान सभा का विशेष अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन में ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल के एक भाग के रूप में भारत की स्वतन्त्रता की घोषणा की गयी। लार्ड माउण्टबेटन नवीन भारतीय अधिराज्य के गर्वनर जनरल नियुक्त किये गये।