
दो लाख से ज्यादा उम्मीदवार निर्णय न होने से परेशान थे, जबकि एसटीएफ और पीएससी दोनों अब तक फैसला एक-दूसरे पर टाल रहे थे। प्रदेश के करीब 400 प्रशासनिक पदों के लिए फरवरी-2013 में राज्यसेवा परीक्षा-2012 का पहला दौर हुआ था। अक्टूबर में मुख्य परीक्षा भी हुई।
2014 में रिजल्ट घोषित हुआ और करीब 1200 उम्मीदवारों के लिए इंटरव्यू की घोषणा कर दी गई। 2014 में दिल्ली पुलिस ने एक गैंग पकड़ी, जिन्होंने परीक्षा के पर्चे लीक करने की बात कही। पेपर आउट होने की खबर लगते ही पीएससी ने ऐनवक्त पर इंटरव्यू स्थगित कर दिए। दो साल से परीक्षा पर फैसला नहीं हो पा रहा था।
न तो पीएससी इंटरव्यू का अंतिम दौर आयोजित कर रहा था और न ही प्रक्रिया को रद्द करने का फैसला ले रहा था। अधर में अटकी परीक्षा को लेकर अलग-अलग याचिकाएं इससे पहले कोर्ट में पहुंची थीं। पीएससी ने कोर्ट में कहा था कि एसटीएफ की जांच चल रही है। एसटीएफ ने पेपर आउट पर निष्कर्ष नहीं दिया है।
ऐसे में वह निर्णय कैसे ले। कोर्ट ने बीते वर्ष एसटीएफ को तीन महीने में जांच रिपोर्ट पीएससी को सौंपने का आदेश दिया था। रिपोर्ट सौंपी गई लेकिन उसमें एसटीएफ ने लिख दिया जांच अब भी जारी है। लिहाजा पीएससी ने फिर से निर्णय टाल दिया।
अबकी बार अभ्यर्थी पीयूष तिवारी ने जबलपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर कर परीक्षा का भविष्य तय करने की मांग की। इस पर फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने आदेश दिया कि एसटीएफ को दी गई मियाद बीत चुकी है। पीएससी खुद तीन सप्ताह में इस परीक्षा निर्णय ले। इसके लिए जोगिंदर पाल विरुद्ध पंजाब सरकार व अन्य के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को आधार बनाया जाए।
ये निर्णय बनेगा आधार
पंजाब पीएससी में चयन प्रक्रिया में पक्षपात कर प्रशानिक पदों पर नियुक्ति देने के आरोप साबित हुए थे। पीएससी चेयरमैन द्वारा रिश्वत लेकर चयन करने का मामला सामने आने पर हाई कोर्ट ने सभी नियुक्तियां रद्द कर दी थीं। बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। जोगिंदर पाल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि जिन लोगों का चयन ईमानदारी से और योग्यता के आधार पर हुआ है, उनके साथ अन्याय न हो, इसका भी ध्यान रखना होगा। गलत तरीके से चयनित होने वाले और ईमानदार उम्मीदवारों को अलग-अलग किया जाए। जो योग्यता से चयनित हुए हैं, उन्हें सजा नहीं दी जा सकती।