नई दिल्ली। अगले पांच साल के दौरान लैब में तैयार मांस, दूध और अंडे शहरों के स्टोरों पर बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे। इसके लिए न तो पशुओं को मारा जाएगा, न यातना दी जाएगी॥ माइक्रोब तकनीक से ऐसा संभव हो पाएगा। स्वास्थ्य की दृष्टि से ये सुरक्षित होंगे क्योंकि हर तरह के प्रदूषण या मिलावट से मुक्त होंगे।
अमेरिका की कई कंपनियां तथा शोधकर्ता ऐसे उत्पादनों की कीमत व्यावहारिक बनाने पर मशक्कत कर रहे हैं। खानपान का पूरा स्वरूप ही बदलने जा रहा है। अमेरिका के अनुसंधान संगठन न्यू हार्वेस्ट के सीईओ ने बताया कि खमीर के बैक्टीरिया से गाय के बिना ही दूध का उत्पादन होगा। पशुओं की कोशिकाएं लेकर लैब में मांस का उत्पादन होगा। इस तकनीक से हैम्बर्गर का उत्पादन पहले ही किया जा चुका है।
बढ़ाई जाएंगी कोशिकाएं:
गाय के टिश्यू लेकर उनका विभाजन किया जाएगा। कोशिकाओं को अरबों की संख्या में बढ़ाया जाएगा, इसके बाद इन्हें मांसपेशियों के टिश्यू से मिला दिया जाएगा जिससे "मीटबॉल" का निर्माण होगा। मांस का यह टुकड़ा बिल्कुल असली पशु के शरीर के हिस्से जैसा ही होगा। एक अन्य कंपनी मुर्गी के बिना अंडे बनाएगी जिनका मूल्य वास्तविक अंडे से भी कम होगा। कंपनी के सीईओ का कहना है कि निश्चित रूप से हम यह लक्ष्य पूरा करेंगे पर अभी हमें वक्त की जरूरत है।
भविष्य की तस्वीरः
भविष्य की तस्वीर है - काउ-लेस मिल्क, पिग-लेस मीट, हेन-लेस एग। पशु, पक्षियों में मैड काउ, बर्ड फ्लू जैसे कई रोग फैलने के कारण दूध और मांस का सेवन खतरे का कारण बन जाता है। पशुओं को रखने की जगह भी सही नहीं होती। दूध, दही में मिलावट तथा मांस के संक्रमित होने की आशंका रहती है। इन सबको देखते हुए कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बूचड़खानों और डेयरी फामोर् को आधुनिक व स्वच्छ प्रयोगशाला में बदलने की योजना बनाई है।
सबसे बड़ी चुनौतीः
विज्ञानियों और कंपनियों के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती लैब निर्मित खाद्य पदार्थो की कीमत तर्कसंगत बनाने की है। इस समय एक "मीटबॉल" बनाने पर लाखों रुपये खर्च आएगा। तकनीक को और विकसित, व्यावहारिक तथा सस्ती बनाने के लिए कई देशों के विज्ञानी और कंपनियां इन दिनों गहन अनुसंधान कर रहे हैं।