घर: लुटते और लूटते लोग

राकेश दुबे@प्रतिदिन। सरकार ने संसद में बिल्डरों के खिलाफ विधेयक पारित कर दिया है . कुछ राहत मिलने की सम्भावना प्रश्न चिन्ह के साथ  है| दरअसल  भारत की आजादी के साथ ही कालेधन की बीमारी पनपी, जो आज बिल्डर व्यवसाय के मूल में बसी हुई है । इस तरह का पैसा किन लोगों के पास  से आता है? राजनीतिज्ञों, अफसरों, लोलुप कारोबारियों और दलालों से । इन्हें अपने पैसे को ठिकाने लगाने के लिए अचल संपत्ति से बेहतर कोई जरिया नजर नहीं आता । शहरीकरण के साथ मध्य वर्ग आकार ले रहा है । महानगरों के साथ मंझोले शहरों को बड़ी संख्या में सस्ते आवासों की जरूरत थी। पहले सरकारों ने विकास प्राधिकरण और आवास विकास परिषद् जैसी संस्थाएं बनाकर इस आवश्यकता को पूरा करने की कोशिश की। यह प्रयोग नाकाफी और नाकारा साबित हुआ।

यहीं से एक नई प्रजाति का जन्म हुआ, जिन्हें लोग 'बिल्डर' कहते हैं। इनमें से कुछ तो सिर्फ मुखौटा भर हैं । वे राजनेताओं, अफसरों और कालाधन धारकों का पैसा ठिकाने लगाने के लिए जन्मे हैं । इन्होंने अनैतिकता और अन्याय के नए प्रतिमान गढ़े। हर रोज हर शहर में बिल्डर उपभोक्ता विवाद जन्म लेने लगा। बिल्डर आकर्षक विज्ञापन निकालते, लुभावने वायदे करते और 'सैंपल फ्लैट' तैयार करते। उनको देखते समय लोगों की आंखों में हसरतों का सुरूर उमड़ पड़ता। वे नहीं जानते थे कि ये हाथी के दिखाने के दांत हैं। वायदा कुछ किया जाता, दिया कुछ और। कभी बिना नक्शा पास कराए भवन खड़ा हो जाता, तो कहीं जमीन की वैधानिकता को ही अनदेखा कर दिया जाता। ऐसे 'बिल्डर' निश्चिंत भाव से लोगों को चूना स्वतंत्रता से लगाते रहे | जिन लोगों पर उनके खिलाफ कार्रवाई करने की जिम्मेदारी थी, वे खुद उनके 'पार्टनर' थे।यह पार्टनरशिप पत्नी बच्चों से लेकर पालतू पशुओं तक नाम से तक मिली है | घर के सपने पूरे  न करने के दोष से मुक्ति के फलस्वरूप यह विधेयक आया है|

दूर-दराज बस गए आम नागरिकों की जमीनों, तालाबों, सरकारी जमीनों, यहां तक कि सेना अथवा रेलवे की संपत्तियों तक पर कब्जे के किस्से भी उजागर हुए हैं । इस विधेयक का तोड़ भी ढूढने में लोग लगे है, सरकार को सचेत ही जाना चाहिए, यदि कुछ करना है तो |
  • श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।       
  • संपर्क  9425022703       
  • rakeshdubeyrsa@gmail.com

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