राकेश दुबे@प्रतिदिन। और वित्तमंत्री अरुण जेटली के कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) की निकासी पर कर लगाने के प्रस्ताव को वापस लेने से वेतनभोगी वर्ग ने राहत की सांस ली है। इसके संकेत बजट पेश होने के एक-दो दिन बाद से ही मिलने लगे थे कि सरकार इस मामले में पुनर्विचार कर सकती है। दरअसल, वित्तमंत्री के बजट भाषण में यह प्रस्ताव आते ही इस पर तीखी प्रतिक्रियाओं का सिलसिला शुरू हो गया। कांग्रेस तो लगातार इस प्रस्ताव को सरकार को घेरने का मुद्दा बनाए हुए थी ही, सरकार के सहयोगी दल भी खुश नहीं थे। शिवसेना ने तो खुल कर अपनी नाराजगी भी जताई थी। इसके अलावा, तमाम श्रमिक संघों ने भी विरोध जताया और आंदोलन की भी चेतावनी दी थी। ईपीएफ संबंधी एक प्रावधान के चलते सरकार को चौतरफा आलोचना झेलनी पड़ रही थी।
वैसे भी भविष्य निधि की निकासी पर कर लगाने का कोई औचित्य नहीं था। पीएफ पर कर लगाना दोहरा कराधान होता, क्योंकि पीएफ वेतन से काटा जाता है, जिस पर कर्मचारी पहले ही कर अदा कर चुका होता है। कर नई आय पर लगता है, मगर पीएफ कोई नई आय नहीं है। विरोध के साथ-साथ सरकार के प्रस्ताव को लेकर गलतफहमी भी काफी फैली। पीएफ की सारी निकासी से लेकर केवल कर्मचारी के अंशदान या केवल अगले वित्तवर्ष से जमा होने वाले अंशदान या उस पर मिलने वाले ब्याज के साठ फीसद पर आय कर लगाने की योजना तक, अनेक धारणाएं बनती-बिगड़ती रहीं, और बहुत-से लोगों के लिए यह समझ पाना मुश्किल हो रहा था कि वास्तव में सरकार का इरादा क्या है। पर इसमें लोगों का क्या दोष है! गलतफहमी की गुंजाइश सरकार के स्तर से ही शुरू हुई।
वित्तमंत्री के बजट भाषण में आया प्रस्ताव कुछ और कहता था, वर्ष २०१६-१७ के लिए पेश किया गया वित्त विधेयक कुछ और। भविष्य निधि में कर्मचारी के मूल वेतन (बेसिक सेलरी) और महंगाई भत्ता (डीए) का बारह फीसद अंश जमा होता है और इसी के बराबर अंशदान नियोक्ता की ओर से भी किया जाता है। वित्तमंत्री के बजट भाषण से ऐसा लगता था कि कर्मचारी की कुल पीएफ राशि के साठ फीसद पर कर लगेगा। जबकि प्रस्तावित वित्त विधेयक का एक प्रावधान कहता है कि कर्मचारी के अंशदान के साठ फीसद पर कर देना होगा।
ये भिन्न-भिन्न स्पष्टीकरण भ्रम पैदा करने के अलावा और क्या कर सकते थे? संबंधित प्रस्ताव सरकार ने वापस लेकर ठीक ही किया |
- श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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