
अस्पताल ले जाने पर डॉक्टर ने चैक भी किया। घर ले जाने को भी कहा। लेकिन जिस स्ट्रेचर से उन्हें गाड़ी तक लाया जा रहा था वह गेट में फंस गया। निकालने की काेशिश की तो स्ट्रेचर टूट गया। मरीज की तबीयत फिर बिगड़ गई। व्हीलचेयर मांगी नहीं मिली। मदद के लिए दोस्त व पत्नी इधर-उधर दौड़े। लेकिन तब तक मरीज का दम टूट चुका था।
हैदराबाद निवासी एम. लिंगमूर्ति (74) एचएएल डिप्टी जनरल मैनेजर के पद से रिटायर्ड हुए थे। वे 4 मार्च को पत्नी मल्लेश्वरी के साथ हैदराबाद-गोरखपुर एक्सप्रेस से लखनऊ जा रहे थे। उन्हें नैमि शारण्य जाना था। बी-4 थर्ड एसी कोच में उनका रिजर्वेशन था। रात करीब 9.30 बजे लिंगमूर्ति की तबियत बिगड़ी। उन्होंने पत्नी को बताया कि घबराहट हो रही है। यात्रियों ने सलाह दी कि इलाज के लिए इटारसी में उतर जाएं लेकिन मल्लेश्वरी भोपाल में इलाज कराना चाहती थीं। तब उन्होंने लिंगमूर्तिं के सहकर्मी रहे इंस्ट्रूमेंटेशन लिमिटेड कोटा के चेयरमैन, अरेरा कॉलोनी निवासी निरंजन सिन्हा को फोन कर स्थिति बताई।
स्टेशन पर चैकअप, फिर तत्काल अस्पताल पहुंचे
ट्रेन रात 12.30 बजे भोपाल स्टेशन पहुंची। यहां सिन्हा, उनकी पत्नी शशि, स्टेशन मास्टर और डॉक्टर कुलदीप मिश्रा मौजूद थे। बाहर एंबुलेंस भी तैयार थी। डॉ. मिश्रा ने चेकअप कर बताया कि तबियत ज्यादा खराब है किसी बड़े अस्पताल में भर्ती किया जाए। इसके बाद उन्हें हमीदिया ले जाया गया।
शुगर 291 थी पर डॉक्टर ने कहा-एसिडिटी है
हमीदिया पहुंचते ही रूम नंबर 12 में बैठे डॉक्टर ने देखा व मेडिकल वार्ड-2 में भर्ती करने को कहा। सिन्हा के अनुसार मेडिकल वार्ड-2 में डाॅक्टर ने शुगर चैक की जो 291 थी। डाॅक्टर ने बताया कि एसिडिटी से परेशानी हो रही है। आईसीयू में भर्ती करने के बजाए डाॅक्टर ने पर्चा लिखा आैर कहा - पेशेंट को घर ले जाएं।
अव्यवस्थाआें की कहानी सिन्हा की जुबानी
जब डाॅक्टरों ने लिंगमूर्ति को घर ले जाने को कहा तो उन्हें स्ट्रेचर से मेडिकल वार्ड से बाहर ला रहे थे। रात के करीब दो बज चुके थे। गेट के पास स्ट्रेचर फंस गया। निकालने की कोशिश में वह टूट गया। लिंगमूर्ति जमीन पर गिरे आैर बेहोश हो गए तुरंत हमने वार्ड में दौड़ लगाई और बताया कि स्ट्रेचर टूटने से मरीज नीचे गिर गया है। तभी वार्ड ब्वाॅय चिल्लाने लगा कि स्ट्रेचर तोड़ दिया अब व्हील चेयर मांग रहे हो।
मुश्किल से दूसरे स्ट्रेचर पर पेशेंट को लिटाकर वापस वार्ड में लाए। गलियारे में ही डाॅक्टर ने चेकअप किया। इंजेक्शन लगाया। हार्ट को पंप किया, लेकिन उनकी सांसें तब तक उखड़ चुकी थी। रात 2.15 बजे डाक्टर ने पर्चे में ब्रॉट डेड लिखा। रात में ही शव हम अपने घर लाए। अस्पताल से मृत्यु प्रमाण पत्र मिलने के बाद पांच मार्च की शाम उनका शव हैदराबाद के लिए रवाना किया।
डेथ सर्टिफिकेट के लिए होना पड़ा परेशान..
शव हैदराबाद ले जाने के लिए डेथ सर्टिफिकेट चाहिए था। ड्यूटी डाॅक्टर से सर्टिफिकेट देने को कहा, उन्होंने ध्यान नहीं दिया। दिन में डॉ. डीके पाल से संपर्क किया। काफी परेशान हुए तब कहीं शनिवार दोपहर में अस्पताल ने डेथ सर्टिफिकेट दिया।