सीएम आफिस में खाक हुईं 3000 फाइलों का आॅडिट भी नहीं हुआ था

भोपाल। होलिका दहन की रात सीएम ऑफिस के कमरा नंबर 523 में आग के दौरान जो 3 हजार फाइलें जलीं, उनका ऑडिट भी नहीं हुआ था। जानकारों के मुताबिक अग्निकांड में सीएम स्वेच्छानुदान और बीमारी योजना की फाइलें थीं। इनका ऑडिट नहीं होता है लेकिन इस घटना के बाद नियम पर भी सवाल उठने लगे हैं। घटना की जांच के आदेश भी नहीं हुए। सीएम के सचिव अरुण भट्ट का कहना है कि जांच के आदेश जल्दी होंगे।

अफसर कह रहे, सुरक्षित है सारा डाटा
जिस कमरे में आग लगी वहां मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान, मुख्यमंत्री सहायता कोष और मुख्यमंत्री बीमारी सहायता योजना की 8400 फाइलें थीं। 3 हजार से अधिक जलकर खाक हो गईं। कुछ फाइलें अधजली हैं, जिन्हें बस्तों में बांध कर रख दिया गया है। डेढ़ सौ में से सौ बस्तों को पूर्व मंत्री कैलाश विजयवर्गीय के कक्ष में सुरक्षित रखा गया है, जो पचास बस्ते जलकर खाक हो गए हैं, उनकी जानकारी नहीं है।

मुख्यमंत्री सचिवालय के अफसर कहते हैं कि यह कहना गलत है कि रिकाॅर्ड नष्ट हुआ है। मुख्यमंत्री सचिवालय में सिर्फ अनुदान के संबंध में अनुमोदन किया जाता है। इसके बाद संबंधित व्यक्ति को राशि का भुगतान किए जाने संबंधी फाइल सामान्य प्रशासन विभाग को भेज दी जाती है, जहां किस व्यक्ति को मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान में कितनी राशि दी गई सभी रिकार्ड सुरक्षित है। इसके अलावा मंत्रालय के सारा रिकार्ड ऑन लाइन कंप्यूटराइज्ड है जो एनआईसी के सर्वर से लिंक है।

पुलिस कर रही जांच, लेकिन सही जानकारी नहीं
इस हादसे पर जाहंगीराबाद पुलिस ने केस रजिस्टर्ड किया है। एक सब इंस्पेक्टर घटना की जांच करने के लिए शनिवार को मंत्रालय पहुंचे। उन्होंने सामान्य प्रशासन विभाग के अफसरों से हादसे के दौरान डयूटी कर रहे कर्मचारियों और सुरक्षा में लगे लोगों की जानकारी मांगी, जो उन्हें नहीं दी गई। हालांकि सब इंस्पेक्टर ने पत्र लिखकर जीएडी में दे दिया है।

रिकॉर्ड रूम भेजना था पर नहीं भेजा
मुख्यमंत्री बीमारी सहायता योजना के तहत बीपीएल श्रेणी के मरीजों को मदद दी जाती है। वर्ष 2006 से 2009 के बीच स्वीकृत केसों की फाइलें सीएम आफिस में रखी थीं। इन्हें छह साल पूरे होने पर रिकार्ड रूम में भेज दिया जाता है, लेकिन ये फाइलें सीएम आफिस में ही रखी रहीं। यहां राज्य और केंद्र के बीच होने वाले पत्राचार का रिकार्ड भी रखा जाता है।

अफसर भी मानते हैं, होना चाहिए आॅडिट
पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा कहते हैं कि स्वेच्छानुदान, बीमारी सहायता और रिलीफ फंड जैसी योजनाएं सीधे पब्लिक से जुड़ी हैं। भले ही मुख्यमंत्री को स्वेच्छा से राशि आवंटन करने का अधिकार होता है, लेकिन ऑडिट होना चाहिए।

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