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1971 का भारत - पाकिस्तान युद्ध एक नजर
ताशकन्द समझौता से भारत और पाकिस्तान के मूल मतभेदो का अन्त नही हुआ। समझौते के पश्चात दोनो देशो के सैनिक अपने अपने स्थानो पर लौट गये, परन्तु जल्दी ही पाकिस्तान ने ऐसी गतिबिधियो में भाग लिया, जिनसे पुनः तनाव व्याप्त हुआ। उदाहरण के लिये। 1967 के आरंभ में भारतीय क्षेत्र में पाकिस्तानी हवाई जहाज का घुस जाना, मई 1967 में अखनूर क्षेत्र में भारत -पाकिस्तान के सैनिको के मध्य झडप जनवरी 1971 में इण्डियन एयरलाइन्स के विमान का अपहरण किया जाना और अपहरणकर्ताओ की माॅगे न माने जाने पर उसे जला डालना आदि घटनाओ ने संबंधो में कटुता उत्पन्न की। इस बीच पूर्वी पाकिस्तान में ग्रह युद्ध छिड गया। दिसम्बर 1970 में पाकिस्तान की प्रादेशिक बिधानसभाओ के चुनाव हुये ।इन चुनावो में पूर्वी पाकिस्तान में शेख मुजीबुर्ररहमान की अवामी लीग को अच्छी सफलता मिली। अवामी लीग पूर्वी पाकिस्तान को स्वतंत्रता दिलाना चाहती थी। जब पाकिस्तान की पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष जुल्फिकार अली भुटटो और राष्ट्रपति याहिया खाॅ ने अवामी लीग की विजय को महत्व नही दिया तब अवामी लीग नाराज हो गयी। परिणामस्वरुप पूर्वी पाकिस्तान में अवामी लीग ने 3 मार्च को हडताल कर दी। सरकार ने इस आन्दोलन को हिंसा के द्रारा कुचलने का प्रयास किया परन्तु शान्ति स्थापित नही हो सकी।अवामी लीग के अध्यक्ष मुजीबुर्ररहमान ने 7 मार्च 1971 को ढाका में विशाल जनसभा को संम्बोधित किया और राष्ट्रपति याहिया खाॅ द्रारा राष्ट्रीय असेम्बली के अधिवेशन में सम्मिलित होने के पूर्व कहा कि शासन की बागडोर जनता द्रारा चुने हुये। प्रतिनिधियो को सौपी जाये। उन्होने सेना की वापसी, मार्शल ला की समाप्ति हत्याओ की न्यायिक जाॅच आदि की मांग की। पूर्वी पाकिस्तान पर से केन्द्र का नियंत्रण समाप्त हो गया। और अवामी लीग हावी हो गयी इस प्रकार पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति का संघर्ष आरम्भ हो गया। मुक्ति का संघर्ष करने बाले मुक्ति वाहिनी कहलाये जाने लगे। पाकिस्तान की सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान की जनक्रान्ति को दबाने के लिये सैनिक अभियान छेड दिया। इस मामलें में भारत की सहानुभूति अवामी लीग के साथ थी। भारत ने पाकिस्तान की सैन्य कार्यबाही की निन्दा की। पाकिस्तान ने इसे अपने आन्तरिक मामलो में हस्तक्षेप माना। इस तरह भारत- पाकिस्तान के मध्य संम्बन्ध अत्यन्त खराब हो गये। स्थिति इतनी खराब हो चुकी थी। कि दोनो देशो के बीच कभी भी युद्ध आरंम्भ हो सकता था।
17 अप्रैल 1971 को बंगला गणराज्य की बिधिवत स्थापना हो गयी। इस प्रकार पूर्वी पाकिस्तान को बंगाली बंगला देश कहा जाने लगा। पाकिस्तान पूर्वी पाकिस्तान बंगलादेश में लोकतंत्र का गला घोटा जा रहा था तो भारत की चिन्ता का सबसे बडा कारण यह था कि हजारो की संख्या में शरणार्थी भारत आ रहे थे। ऐसी स्थिति में भारत अपने पडोस में चल रही गतिविधियो पर आॅख मूॅदकर चुप नही बैठ सकता था। इधर पाकिस्तान में युद्ध का उन्माद बढ रहा था।
युद्ध का आरंभ- 12 नवम्बर 1971 को भारत पाकिस्तान की पूर्वी सीमा पर स्थिति विस्फोटक हो गयी। दोनो देशो की सेनाएॅ आमने सामने खडी थी। मुक्ति वाहिनी से जूझते हुएॅ कुछ पाकिस्तानी टैंक भारतीय सीमा में प्रवेश कर गयें। भारतीय सेनाओ ने उन्हे नष्ट कर दिया। पाकिस्तान ने श्रीनगर से आगरा तक पश्चिमी भारत के दस हवाई अडडो पर खुली बमबारी की। जम्मू कश्मीर के पूॅछ अंचल से युद्ध विराम रेखा पार करके बडी संख्या में पाकिस्तानी घुस आये तथा चश्चिमी सीमाओ की अनेक चैकियो पर गोलाबारी शुरु कर दी। भारत सरकार एकाएक हमले की संभावना के प्रति पूर्णरुप से सतर्क थी। अतः भारत ने पाकिस्तानी आक्रमण का करारा जबाब दिया। भारत ने पूर्वी और पश्चिमी दोनो मोर्चो पर दुश्मन को खदेडने की कार्यबाही आरम्भ की।
युद्ध जैसे जैसे बढता गया युद्ध को रोकने के लिये अन्तराष्ट्रीय प्रयास प्रारंभ हो गये। अमेरिका पाकिस्तान को संकट पूर्ण स्थिति से बचाना चाहता था। उसका उदेश्य बंगलादेश की समास्या का वास्तविक एवं उचित हल निकालना नही था। इन प्रयासो के कोई परिणाम नही निकले । भारत सरकार का कहना था। कि इस संकट का शान्तिपूर्ण हल तभी निकल सकता है। जब बंगलादेश से पाकिस्तानी फौजे हट जायेगी। पाकिस्तानी सेनाओ ने पूर्वी पाकिस्तान पर जो अमानवीय अत्याचार, किये, उसके परिणाम स्वरुप लाखो शरणार्थी भारत आ गये। पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान पर अपना कब्जा बनाये। रखने के लिये। स्थितियो को भारत - पाकिस्तान युद्ध में बदल दिया। इन परिस्थतियो में भारत को आत्मरक्षार्थ युद्ध करना पडा।
युद्ध जारी रहा और इस बीच भारत ने 6 दिसम्बर को बंगला देश को मान्यता प्रदा कर दी। अतः पाकिस्तान ने भारत से अपने राजनायिक सम्बन्ध तोड लिये। जब अमेरिका को लगा कि पाकिस्तान को सभी मोर्चो पर हार खानी पडेगी तब उसने भारत पाकिस्तान युद्ध के प्रश्न को संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रस्तुत करने का निश्चय किया।
पाकिस्तान बडे हौसले और पर्याप्त तैयारी के साथ युद्ध में कूदा था। परन्तु युद्ध के प्रत्येक मोर्चो पर उसकी पराजय हुयी।भारतीय सेनाओ ने स्थल जल , वायु, सेना की सम्मिलित कार्यबाही कर पाकिस्तान को घुटने टेकने पर विवश कर दिया। भारत ने चारो ओर से पाकिस्तानी सेनाओ को घेर लिया। इन परिस्थितियो में पाकिस्तानी सेना के कमाण्डर जनरल नियाजी ने ढाका में 16 दिसम्बर 1971 को आत्मसमर्पण पत्र पर हस्ताक्षर किये। नियाजी के साथ 93 हजार पाकिस्तानी सैनिको का यह समर्पण भारतीय जनरल जगजीत सिंह अरोडा के समक्ष किया। पश्चिमी मोर्चे पर भी पाकिस्तान को युद्ध बन्द करने को विवश होना पडा